आखिर क्यों ले रहा है अमीर देशों का कचरा भारत?

मल्टीलेयर प्लास्टिक पर्यावरण के लिए घातक

श्रवण चौहान की स्पेशल स्टोरी : यह एक बड़ा सवाल है कि आखिर क्यों ले रहा है अमीर देशों का कचरा भारत जबकि भारत में हर साल 26 टन प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है इसलिए भारत दुनिया में 15 स्थान पर सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषित देश है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अक्टूबर 2019 में 12 तरह के सिंगल न्यूज़ प्लास्टिक को बैन कर दिया है. जो डर्टी जोन कि श्रेणी में आती थी।

लेकिन अगर सुधार की बात की जाए तो अभी भी किसी भी प्रकार का विशेष सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। भारत कचरा प्रबंधन तंत्र ने भी इस पर किसी भी प्रकार का कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। आपको यह पढ़कर काफी आश्चर्य लगेगा कि विदेशों का कचरा भारत आता है। जी हां आपने बिल्कुल सही पड़ा है।

दरअसल दुनिया का आधा कचरा प्रोसेस होने चीन जाया करता था लेकिन 2018 से चीन ने इसे लेने से मना कर दिया। फिर अन्य देश इसे लेने लगे उदाहरण के लिए जर्मनी का कचरा मुख्य तौर पर मलेशिया भारत इंडोनेशिया वियतनाम जा रहा है जिसमें एक रिपोर्ट के मुताबिक बताया रहा है कि मलेशिया में हर साल 1 लाख 32 हज़ार टन कचरा जर्मनी से भेजा जाता है तो 76 हज़ार टन भारत को भी जर्मनी का कचरा आता है ।

इन कचरों से बहुत से परिवारों का घर भी चलता है लेकिन बहुत से ऐसे घर परिवार भी हैं जो इन कचरा की वजह से उजड़ गए हैं। ऐसे में यह सोचने वाली बात है कि आखिर क्यों ले रहा है अमीर देशों का कचरा भारत। क्या इन अमीर देशों से गरीब देश कचरा लेकर बीमारी पैदा करना चाहते हैं। या फिर इसके बदले में मोटी रकम मिलती है।

आपको जानकारी देते चले की , प्लास्टिक कचरे के मामले में सबसे आगे उत्तर प्रदेश है, जहां 28,846 मीट्रिक टन कचरा आयात किया गया। वहीं इस मामले में 19,517 मीट्रिक टन के साथ दिल्ली दूसरे स्थान पर है। 19,375 मीट्रिक टन कचरे के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है। जबकि 18,330 मीट्रिक टन के साथ गुजरात चौथे और 10, 689 मीट्रिक टन कचरे के आयात के साथ तमिलनाडु पांचवें स्थान पर है।

इन्हीं ग्राफ़ो को नीचे गिराने के लिए ये जरूर देखने को मिला करता है, कि सरकारी कर्मचारी छोटे-छोटे दुकानों पर छापा मारकर उनको नोटिस पकड़ा कर उनसे मोटी रकम लेने का काम जरूर करते हैं। लेकिन ऐसे में यह भी बड़ा सवाल है कि क्या छोटे-छोटे दुकानदारों को पकड़कर उनसे मोटी रकम लेना अच्छी बात है। ऐसे में सरकार तथा कचरा प्रबंधन तंत्र इन पॉलिथीन बनाने वाली फैक्ट्री के ऊपर कानूनी तौर पर कार्यवाही करना चाहिए जिससे पर्यावरण में सुधार देखने को मिल सके।

अंत में फिर इसी सवाल के साथ मै आप को छोड़ जाता हूँ कि आखिर क्यों ले रहा है अमीर देशों का कचरा भारत?

भारत को अफरोज शाह जैसे युवाओं की है जरूरत

मुंबई के रहने वाले युवा अफरोज शाह की मिसाल साफ सफाई के मामले में हर तरफ दी जाती है . दरअसल अफरोज शाह की मिसाल इसलिए दी जाती है क्योंकि इन्होंने 9 मिलीयन किलोग्राम प्लास्टिक कचरे को निस्वार्थ भावना से सफा कर एक मिसाल देने का काम किया है . अफरोज शाह ने एक इंटरव्यू में बताया कि मुंबई के वर्सोवा बिज पर वह कुछ साल पहले एक प्लाट लेने आए थे .

लेकिन समुंदर के किनारे गंदगी के अंबार लगे होने के चलते बहुत परेशान हो गए जिसके चलते उन्होंने यह प्रण लिया कि समुद्र के किनारे लगी गंदगी को जड़ से खत्म कर डालेंगे 2016 में अफरोज शाह ने जब गंदगी को खत्म करने के लिए अकेले जुटे तो लोग उन्हें पागल समझने लगे फिर धीरे-धीरे जब उन्होंने पूरे समुद्र के किनारे की गंदगी को साफ कर डाला तो लोग उनकी मिसाल देने लगे आज ये दुनिया का सबसे बड़ा बिज क्लीनअप बन गया है.