भगवा ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रतीक, कुर्सी चाहने वाले धृतराष्ट्र न बने

भारत की कुर्सी हने वाले लोग अपने मुँह से क्या क्या बोल देंगे इसका उन्हें ज्ञान नहीं रह गया। अब CAA और एनपीआर को छोड़कर भगवा के ऊपर कीचड़ उछालना शुरू कर दिया है। उन्हें यह ज्ञान नहीं है कि “भगवा भारत की आत्मा” है। आज से 5 हजार वर्ष पहले इसी भगवा को ललकारने वाले जुआ ,मदिरा, कुर्सी , शोषण और महिलाओं के चीरहरण जैसे अपराधों को “राष्ट्र धर्म” बनाकर राज कर रहे थे। उन्हें मार्गदर्शन करने वाले भगवान श्री कृष्ण जैसे जगतगुरु की बात आँख और ज्ञान से अंधे धृष्टराष्ट्र को भी समझ नहीं आयी। जिसका परिणाम था उन सबका विनाश जो भगवा रूपी ज्ञान के प्रकाश को अपशब्द कह रहे थे।

यह तो हुई इतिहास की बात। आज इसदेश की राजनीति फिर उसी चौराहे पर खड़ी है। धृतराष्ट्र जैसे लोग कुर्सी पाने के लिए अंधे की अंधी सन्तानो को भगवा और भगवा धारियों को भला बुरा कहने में लगा दिया , जिससे कुर्शी का जुगाड़ बन जाय और उन अज्ञानियों ने देश में गृहयुद्ध की परिस्थितियां बनादी।

बात यही तक सीमित रहती तो चल जाता अब उन अज्ञानियों ने भारत की आत्मा (भगवा) को झकझोरना शुरू कर दिया है। उन्हें यह ज्ञान नहीं है की इस जगतगुरु भारत के ऋषियों ने बहुत बड़े तप के बाद इस भगवा को जगत गुरु का सम्मान दिलाया था। आज उन्ही की संतानों (हिन्दुओं ) के सामने उसका चीर हरण हो रहा है। यदि उस विपक्ष में कोई समझदार हों तो वे इस बात को समझें कि कंही ऐसा न हो कि भगवान श्री कृष्ण को फिर से ये न कहना पड़े कि “मामनुस्मरयुध्य च “