ध्यान की चिकित्सीय लाभ

ध्यान शब्द की व्युत्पत्ति ‘ध्य” धातु से भाव में “लट” प्रत्यय लगाकर की जाती है। इसका अर्थ चिंतन अथवा इन्द्रियों की अंतः वृत्ति प्रवाह के रूप में किया जाता है। पतंजलि महाभाष्य की उक्ति के अनुसार, ध्यान को एकाग्रता से जोड़ा जाता है।

ध्यान वह भाव दशा है . जिसमें एक ही वास्तु का ज्ञान होता है। ध्यान की दशा में ध्येय और ध्यान का भिन्न -भिन्न ज्ञान होता है, यह विशुद्ध रूप से एक अनुभूति है, जो इंद्रियातीत है। ध्यान की चरम परिणित समाधि में जाकर होती है। भारतीय संस्कृति में इसे आत्मिक लाभ एवं विकास के लिए प्रयोग किया जाता है। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक इसे मानसिक एकाग्रता से सम्बन्धित करते है, तथा मन की विशिष्ट अवस्था मानते है, लेकिन यह ध्यान की प्रारम्भिक अवस्था है। इसकी विधेय एवं स्वरूप भले ही अलग अलग हो आज का विज्ञान भी ध्यान को प्रमाणिक सिद्ध कर इसके लाभों को उजागर करता है।

ध्यान के विषय में पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक का मत तो कहीं-कहीं योग सिद्धांतों से बहुत कुछ मिलता-जुलता है। एस परिप्रेक्ष्य में अर्नेस्तुवुड का विचार है की ध्यान का प्रारंभ वहां होता है, जहाँ धारणा समाप्त होती है। धारणा का उद्देश्य होता है, मानसिक दृश्य के लघु क्षेत्र पर अवधान को केन्द्रित करना, जिससे की उस विषय पर चेतना का प्रकाश आधिक तीव्र हो सके। धारणा में दृश्य क्षेत्र का संकुचन होता है। ध्यान में उसका विस्तार होता है। अतएव ध्यान की सफलता में धारणा का विकास अंतर्निहित होता है। ध्यान आत्मिक रहस्य को अनावृत्त करता है।
ध्यानावस्था में भौतिक एवं मानसिक कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है। सुविख्यात बर्गसा का कथन है की ध्यान के विकास और विस्तार के लिए ब्रह्मा कर्मों को दबाना आवश्यक होता है। उसका यह मत सांख्ययोग मत के अतिनिकट है, जिसके अनुसार केवल आसन और शिथिलीकरण की सहायता से ध्यान को उसके साथ होने वाली क्रियाओं से प्रथक किया जा सकता है।इनके अनुसार, ध्यान शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा आत्मिक स्तर पर लाभप्रद है। इसमें शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ता है मानसिक तनाव, चिंता एवं हिंसावृत्ति में कमी आती है तथा आत्म-ज्ञान एवं आत्मविकास होता है। प्रयोगों से पता चला है की ध्यान द्वारा वैयक्तिक एवं पारिवारिक संबंधों में दृढ़ता आती है मानसिक रोगियों के अलावा ध्यान सभी लोगों के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। माइकल मर्फी एवं स्टीवन डोनावन ने अपने प्रसिद्ध शोध ग्रन्थ ‘ द फिजिकल एण्ड साइकोलॉजीकल इफेक्ट्स ऑफ मेडीटेशन ‘ में इसमें अनेक प्रकार के प्रयोग बताये हैं। इनके अनुसार ध्यान अत्यंत गंभीर अनुभव है।

यह जाग्रत हैपोमेताबलिक अवस्था है। मनोवैज्ञानिक ने ध्यान को ‘रिलेक्स्द अटेन्सन ‘कहा है। जॉनव्हाइट ने ध्यान के कुछ खास लाभ इस तरह गिनाये है –
१) दैनिक जीवन में शांति एवं स्वतंत्रता का बोध होना।
२) तनाव, थकान, उदासी आदि मनोविकारों में कमी।
३) मियादी दर्द जैसे -सिरदर्द, जोड़ों में दर्द आदि से मुक्ति।
४) अनिद्रा रोग में विशेष लाभप्रद।
५) असीम धैर्य एवं दूसरों के प्रति स्नेह और सहानुभूति में विस्तार।
६) परमात्मतत्त्व के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास में वृद्धि।
७) सामाजिक जीवन में सेवा और सहयोग की मनोवृत्ति में बढ़ोत्तरी।

शारीरिक तौर पर ध्यान से मस्तिष्कीय तरंगें, हृदयगति, रक्क्तचाप, त्वचा की प्रतिरोधी क्षमता तथा अन्य शारीरिक क्रियाएं नियमित एवं नियंत्रित होती है।

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