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नकारात्मक चिंतन से बचिए
दैविक प्रकोप, आकस्मिक दुर्घटनाएँ, मृत्यु, शारीरिक कष्ट, आक्रांताओं के अत्याचार, जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति न होना आदि ऐसे कारण हो सकते हैं, जो हमारी सीमा से बाहर हैं । जिनमें साधारण मनुष्य का वश नहीं चलता । *किंतु ये कारण ऐसे नहीं हैं, जो हमेशा ही जीवन में बने रहें ।* कभी-कभार ही ऐसे दुःख भरे कारण उपस्थित होते हैं । किंतु सामान्यतः तो व्यक्ति अपनी विचार करने की *”Negative”* नकारात्मक शैली के कारण दुःखी रहता है । परिस्थितियों का उनमें कोई कारण नहीं रहता ।
चिंतन का यही दोष अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति करने में जल्दबाजी करते समय देखा जा सकता है । इस जल्दबाजी में जब अपना मनचाहा कार्य पूरा नहीं होता या बिगड़ जाता है तो परिणाम में उसे दुःख ही मिलता है । *यह दुःख उसी का बुलाया हुआ है ।* किसी कार्य के पूरा होने में एक निश्चित अवधि तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है । बीज बोते ही फसल पैदा नहीं हो जाती । पौधा रोपते ही वृक्ष नहीं बन जाता ।बच्चा धीरे-धीरे ही क्रमशः जवान व बूढ़ा होता है । *किसी काम को पूरा होने में हमारे प्रयास, साधन और अवसरों के अनुपात का बड़ा प्रभाव रहता है ।* अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति में कितनी शक्ति लगानी पड़ेगी, कितने श्रम-साधन जुटाने पड़ेंगे, किन-किन अवसरों पर कैसी बाधाएँ, रुकावटें या सुविधाएँ मिलेंगी, अपना इच्छित परिणाम प्राप्त होने में कितनी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी आदि बातों पर हमें आकांक्षा करते समय ही गहरा विचार कर लेना चाहिए। *हथेली पर सरसों जमाने जैसा कुछ भी इस संसार में नहीं हो सकता ।*
सरस,सफल जीवन का केंद्रबिंदु पृष्ठ२४
*पं. श्रीराम शर्मा, आचार्य*
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