ब्राह्मण जागरण सम्मलेन

अयोध्या से 125 किमी. के परिक्षेत्र को आध्यात्मिक क्षेत्र बनाने हेतु विश्वकुंडलिनी जागरण संस्थान द्वारा आयोजित वैदिक संस्कृति उत्थानं ब्राह्मण जागरण सम्मलेन
भाइयों / बहनों,
हमारा भारत देश वैदिक संस्कृति वाला देश है। वैदिक कल में इस देश के ऋंषियों ने सम्पूर्ण मानव जाति एवं विश्व वसुधा के समस्त जीव जन्तुओ वृक्ष – वनस्पतियों से लेकर जल , वायु, मिटटी आदि प्राकृतिक संसाधनों के समग्र विकास के सूत्रों पर शोध अनुसन्धान किया था। शोध अनुसन्धान सूत्रों को वैदिक ऋचाओं के माध्यम से समस्त विश्व वसुधा के लिए सुरक्षित कर दिया था। सबसे पहले जिनने मनुष्य में सद्गुणों के विकास एवं प्रकृति को संतुलित रखने के सूत्रों को अपने जीवन में अपनाकर पुरे विश्व को उसका लाभ दिलाने के लिए निःशुल्क रूप में उसे घर घर तक पहुंचाया वे लोग जगत पूज्य होकर ब्राह्मण कहलाए। उन्हें धरती का देवता कहा गया।
उन ब्राह्मणों ने शिखा को माध्यम बनाकर मानव को शरीर विज्ञान समझाया एवं यज्ञोपवीत के माध्यम से सद्गुणों को जीवन में अपनाने की प्रक्रिया अपने आचरण के माध्यम से बतलाया सिर पर चोटी कंधे पर जनेऊ ब्राह्मणों की पहचान हो गई। जिन लोगों ने उस प्रक्रिया अर्थात शिक्षा सूत्र को अपनाया समाज से ऊपर उठकर “द्विज ” हो गए। अर्थात उनका दूसरा जन्म हो गया। “जन्मना जयते शूद्र, संस्कारत द्विज उच्यते ” .
परन्तु दुर्भाग्य है कि समाज का सर्वश्रेठ मानव आज शिखा सूत्र विहीन होता जा रहा है। जो स्वयं ही अपनी पहचान भूल गया है। वो दूसरों का मार्गदर्शन कैसे करेगा। इसलिए अयोध्या के चारों और 125 की. मि. क्षेत्र को आध्यात्मिक क्षेत्र बनाने के लिए सबसे पहले इसी वर्ग को जगाने की आवश्यकता है। ब्राह्मण सम्मलेन इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किये जा रहे हैं। बिना वैदिक संस्कृति उत्थान के राम राज्य को धरती पर लाने का संकल्प पूरा नहीं होगा। “सब नर करहि परस्पर प्रीति, चलहि स्वधर्म निरति श्रुति नीति। का सपना साकार नहीं होगा।
सबसे पहले ब्राह्मण वर्ग को अपने आप को समाज में ढूँढना पड़ेगा। भेंड़ो के बीच खोये हुए बच्चे की तरह से ब्राम्हणों को ढूँढना और उन्हें तराश कर ब्राह्मणत्व को चमकना पड़ेगा। ब्राह्मण जागेगा तो राष्ट्र जागेगा। भारतवर्ष को ज्ञान के क्षेत्र में जगतगुरु , सम्पन्नता के क्षेत्र में सोने की चिड़िया और शासन के क्षेत्र में चक्रवर्ती की उपाधि से विभूषित किया गया था। इसका कारण था यंहा का संविधान यंहा के संविधान का मूल सूत्र था “आत्मवत भूतेषु द्रव्येषु लोकाष्ठवत, मातृवत पर दारेषु यः पश्यति स पश्यति ” दूसरों के साथ वह व्यवहार न करें जो अपने साथ पसंद नहीं। आज पूरा विश्व एक परिवार की तरह हो गया है। देशों की दूरियां घटी है। लोगों के दिलों की दूरियां बढ़ीं हैं। इसका कारण यह है कि त्याग की वृति वाला कोई मॉडल नहीं रह गया। इस देश को जैसे ही इसका कोई मॉडल दिखता है। देश उसको सर आँखों पर बिठा लेता है। चाणक्य, महत्मागांधी, अन्नाहजारे इसके उदहारण हैं।
ब्राह्मण वर्ग को इसलिए ललकारा जा रहा है, और खोजा जा रहा है। कि ऋंषियों का यह बीज कंहा चला गया है। इसलिए ब्राह्मणों जागो और राष्ट्र को जगाओ।
वो ब्राह्मणों भारत की तक़दीर बनादो। हम ऋषियों की संतान हैं दुनिया को दिखा दो।
निवेदक :
आचार्य रामशंकर मिश्र
अध्यक्ष विश्वकुंडलिनी जागरण संस्थान
सिल्हौर घाट, गोमती नदी तट अवध क्षेत्र
सिल्हौर , बाराबंकी उत्तर प्रदेश
Mob. 8172941808
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