समय का सदुपयोग और महत्व

समय का सदुपयोग और महत्व. हर मनुष्य को वक्त का, छोटे से छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्व समझना चाहिये। जीवन का वक्त सीमित है और काम बहुत है। आने से लेकर परिवार, समाज एवं राष्ट्र के दायित्वपूर्ण कर्त्तव्यों के साथ मुक्ति की साधना तक कामों की एक लम्बी शृंखला चली गई है। कर्त्तव्यों की इस अनिवार्य परम्परा को पूरा किये बिना मनुष्य का कल्याण नहीं।इसी कर्म-क्रम को इसी एक जीवन के सीमित वक्त से ही पूरा कर डालना है क्योंकि आत्मा की मुक्ति मानव-जीवन के अतिरिक्त अन्य किसी जीवन में नहीं हो सकती और मुक्ति का प्रयास तभी सफल हो सकते है जब वह उसके सहायक पूर्व प्रयासों को पूरा करता है।

अस्तु जीवन के चरम लक्ष्य मुक्ति पाने के लिए उसकी साधना के अतिरिक्त सारे कर्त्तव्य-क्रम को इसी जीवन के सीमित वक्त में ही पूरा करना होगा। इतने विशाल कर्त्तव्य-क्रम को मनुष्य पूरा तब ही कर सकता है जब वह जीवन के एक-एक क्षण, एक-एक पल और एक-एक विशेष को सावधानी के साथ उपयोगी एवं उपयुक्त दिशा में प्रयुक्त करे। नहीं तो किसने देखा है कि उसके जीवन का अन्तिम छोर कितनी दूरी पर ठहरा हुआ है।जीवन की अवधि सीमित होने के साथ अनिश्चित एवं अज्ञात भी है।

जो क्षण हमारे पास है, हृदय के जिस स्पन्दन में गति है, वही हमारा है। श्वास का एक आगमन ही हमारा है बाकी सब पराये हैं, न जाने दूसरे क्षण हमारे बन पायेंगे या नहीं। अतएव हर बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिये कि जो क्षण, जो श्वास उसके अधिकार में है उसे भगवान की महती कृपा और जीवन का उच्चतम अन्तिम अवसर समझकर इस सावधानी एवं संलग्नता से उपयोग करे कि मानों इसी एक क्षण में सब कुछ दक्षता है। अपने वर्तमान क्षण को छोड़कर भविष्य की युगीन अवधि पर विश्वास करना विवेक का बहुत बड़ा अपमान है। जिस भविष्य पर आप अपने जीवन विकास के कार्यों, अपने विकास कर्त्तव्यों को स्थगित करने की सोच रहे हैं वह आ ही जायेगा, यह जीवन निश्चित अनिश्चितता के बीच निश्चय पूर्वक नहीं कहा जा सकता।

कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अन्ध-विश्वास है। उसकी प्रतीक्षा करने वाले नासमझ इस दुनिया में पश्चाताप करते हुए ही विदा होते हैं। आने वाला कल ऐसा आकाश कुसुम है जो सुना तो गया पर पाया कभी नहीं गया। किन्तु दुर्भाग्य है कि हर स्थगनशील व्यक्ति सदा ही उसी कल पर विश्वास किये हुए उपस्थित वर्तमान में सोता रहता है और जब उसका प्रतीक्षित कल कभी नहीं आता तब उसके पास उस बीते हुये कल के लिये रोने-पछताने के सिवाय कुछ नहीं रह जाता जिसको कि उसने वर्तमान में अवहेलना की थी, और जो कि किसी भी मूल्य पर वापस नहीं लाया जा सकता। समय का सदुपयोग और महत्व .

पं श्री राम शर्मा आचार्य

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