करवाचौथ व्रत का महत्व एवं करवाचौथ व्रत कथा

करवाचौथ व्रत का महत्व एवं करवाचौथ व्रत कथा. हमारे देश मे व्रत एक नही अनेक होते है।इनमें महिलाओं के व्रत पुरूषो के व्रत की अपेक्षा अधिक कठोर होते हैं ।इन महिलाओं के व्रत में भी करवा चौथ, तिलवा, कजली तीज जैसे व्रत बहुत कठिन हैं । तिलवा का व्रत महिलाएँ पुत्र के कल्याणार्थ होता है जबकि कजली तीज व करवाचौथ का व्रत सुहाग के कल्याणार्थ होता है। इसमें सुबह से चन्द्रमा निकलने वह निराहार यहाँ तक कि पानी भी नहीं पीती हैं । गौर करने की बात है कि महिलाएँ कोई भी व्रत अपने कल्याणार्थ नही बल्कि पति पुत्र के मंगल के लिये करती है।

पुरूष कभी नारी के लिये कोई व्रत नही करता है। आज के बदलते समय में लोग नारी को खिलौना मानकर खेल रहे हैं । है भूल रहे हैं कि नारी ही सृष्टि का मूल और शक्ति स्वरूपा है।आजकल कलियुगी सोशल मीडिया के जमाने भाई लोग करवा चौथ को मजाक बनाकर सूचनाओं को प्रसारित कर रहें हैं ।कोई कहता है कि संभालकर भूखी शेरनी खतरनाक होती है तो कोई कहता है कि पत्नी के सामने भूखा रहने का नाटक जरूर करो और बाहर जाकर खूब खाओ लेकिन पत्नी की चोरी से।एक तरफ तो वह भारतीय नारी आधुनिकता के बावजूद दिन भर भूखे प्यासे रहकर पति के दीर्घायु शतायू होने की कामना करती है वहीं वही जिसके लिये वह त्याग करती है जब वही मजाक व धोखाधड़ी पर आ जाता है तो कोई देखे या न देखे ,भगवान तो देखता ही है।

कहते हैं कि करवा और ईद के चाँद का इन्तजार बहुत कठिन होता है। वैसे करवाचौथ के बारे में बताया गया है कि इसमें विघ्न विनाशक गणेश जी की पूजा व व्रत सुहागिन महिलाएँ अपने पति के दीर्घायु के लिये करती हैं ।कहते हैं कि प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण के सात पुत्र और एक पुत्री वीरमती थी।करवा के दिन वह अपने मायके में व्रत थी और भूख बर्दाश्त नहीं कर सकी और बेहोश होकर गिर गयी । कहते हैं कि भाइयों ने उसका मुँह पानी से धोकर कहा चलनी से दिया दिखाकर कहा कि वह देखो चन्द्रमा निकल आया है।इतना सुनते ही वह जल्दी से अर्घ देकर खाने पर बैठ गयी ।पहले कौर में बाल निकला दूसरे मे ठीक हुयी और तीसरे कौर में ससुराल से बुलावा आ गया कि पति मर गया है।

जब रोना पीटना शुरू हुआ तो संयोग से इन्द्राणी वहाँ आ गयी और कहा कि तुमने व्रत तोड़ा है जिससे तुम्हारे पति की मृत्यु हुयी है।अब तुम साल के बारहो चौथ करवा के रूप मे रहो तो तुम्हारा पति पुनः जीवित हो जायेगा । साथियों! करवा का व्रत नारी अपने स्वाभाववश अपने लिये नही पति परमेश्वर के लिये सच्चे दिल एवं श्रद्धा विश्वास से करती है। धन्य सुहागिन भारतीय नारिया।जय हो नारीशक्ति।

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार /समाजसेवी

करवाचौथ व्रत का महत्व एवं करवाचौथ व्रत कथा

एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने बताया कि उसका आज उसका व्रत है और वह खाना चंद्रमा को अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। जो ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चांद हो। उसे देख कर करवा उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है। जैसे ही वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और तीसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तभी उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बेहद दुखी हो जाती है।

उसकी भाभी सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। इस पर करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।

एक साल बाद फिर चौथ का दिन आता है, तो वह व्रत रखती है और शाम को सुहागिनों से अनुरोध करती है कि ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ लेकिन हर कोई मना कर देती है। आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है। इस तरह से उसका व्रत पूरा होता है और उसके सुहाग को नये जीवन का आर्शिवाद मिलता है। इसी कथा को कुछ अलग तरह से सभी व्रत करने वाली महिलाएं पढ़ती और सुनती हैं।

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