दुष्प्रवत्तियों के चंगुल में फंसा मनुष्य

हम सभी इस संसार मे नंगे ही आये है और अंत मे कफन ही साथ जाता है।हम जीवन भर इसी चार गज कफन के लिए के दौडते रहते हैं ।यहाँ तक कि सारे वसूल सिद्धांत तोड़ देते हैं और मानवता से कोसो दूर भाग जाते हैं। न तो कभी अपने को अपनी नजर से देख पाते हैं और न ही कभी खुद को पहचान ही पाते हैं । कमाई की आपा धापी में कभी यह भी नही सोचा कि मैं क्या और कौन हूँ और इस धरती पर क्यों आया हूँ? जो कुछ कर रहा हूँ क्या इसीलिए आये थे ? रावण की तरह मद मे अपने को अजर अमर भगवान मानकर अपनी औकात को भूल अपनी शक्ति के मद मे इठलाते घूम रहे हैं ।

राम बनकर जीना है तो सुख वैभव सब त्यागकर कठिन पग चलना और एकाकी जीवन व्यतीत करना होगा। राज वैभव त्यागकर फकीरी जीवन जीना होगा । रावण के पास सब कुछ था लेकिन वह अनीति के राह पर था इसीलिए सब कुछ होते हुये भी उसे सर्वननाश का द्वार देखना पड़ा।सीता जी माया है और रावण माया के वशीभूत हो गया था जो उसके सर्वनाश का कारण बना ।

नवमी नवी शक्ति है और दशमी विजय की प्रतीक है।भगवान नवमी के दिन ही धराधाम पर आये थे और दशमी को ही अपने अवतरण के मुख्य लक्ष्य को हासिल कर विजय प्राप्त की थी । रावण हमारे जीवन की दुष्टप्रवृतियां हैं, जिन पर विजय हासिल करने के लिये नवशक्तियो की नव दिनों तक पूजा अर्चना होती है।रावण का विनाश होना था इसीलिए वह शक्ति या माया के वशीभूत हुआ।शक्ति का दुरुपयोग न हो इसीलिए कभी हमें अपने आप को अपने बाप को और अपनी औकात को कभी नहीं भूलना चाहिए।

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार /समाजसेवी

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