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नैतिक पीढ़ी निर्माण के लिए कुछ भी न कर सका कला मंच
अभी हाल के दिनों में कला मंच के सुपर अभिनेता युग के महा नायक श्री अमिताभ बच्चन जी को कला मंच का सबसे बड़ा पुरस्कार मिला जो इस कला जगत के लिए बड़े गर्व और सम्मान की बात है। निश्चित रूप से वे बधाई के पात्र हैं।
किसी विधा या विषय को इमोशनल तरीके से जनता के सामने रखने का तरीका कला मंच द्वारा प्रस्तुत करना, यह हमारे ऋंषियों की एक अद्भुत विधा है। इस विधा के द्वारा उस दृश्य या उसकी “थीम” को दर्शकों के गले उतार दिया जाता है। जब देखने वाला व्यक्ति उसके भावों में डूब जाता है तब वह अंदर से हिल जाता है। और उन आदर्शों सिद्धांतों को दृढ़ता के साथ पकड़ कर उसी में जीने लगता है। यह है कला मंच की विशेषता।
हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी को कला मंच ने ही मोड़ कर हरिश्चंद और श्रवण कुमार के सिद्धांतों को जीवन में पिरो दिया, जिसके सहारे वे मोहन दास से महात्मा व बापू व गाँधी फिर राष्ट्रपिता हो गए।
विगत दिनों एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था “बहू – बेटी” यह फिल्म महिलाओं को बेटी का सम्मान तो न दिला पाई हो, लेकिन एक सामाजिक क्रांति करके नारी को विधवा रूपी कलंक और अपमान से बचा लिया। आज वह नारी भी समाज में सम्मान के साथ अपने पति और परिवार के साथ सम्मानित जीवन जी रही है। जो कभी कलंकिनी हो गई थी।
वर्तमान कला मंच से बहुत सारी फ़िल्में और सीरियल आते जा रहे हैं। इन पर करोड़ो रूपये खर्च भी हो रहा है, परन्तु इस नई पीढ़ी को उससे अनेक प्रकार की बुराइयां ही सिखने को मिल रही हैं। जिससे इस नई पीढ़ी के जीवन को उचाईयों वाले सिद्धांत और दर्शन मिल सके, कला मंच में ऐसा अभाव होता जा रहा है। पैसे कमाने के चक्कर में इस नई पीढ़ी को कला मंच नैतिक रूप से कुछ भी न दे सका। वास्तव में सत्ता में बैठे लोग भी नहीं चाहते कि नई पीढ़ी चाणक्य और समर्थ गुरु रामदास के सिद्धांतों को आत्मसात साथ करके चन्द्रगुप्त और वीर शिवा जी जैसे सैनिक बन सके। इसलिए कला मंच के लोग भी केवल लोक मनोरंजन ही कर रहे हैं।