माँ काली को लेकर देखिये क्या बोले पीएम मोदी

माँ काली को लेकर देखिये क्या बोले पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज वीडियो संदेश के माध्यम से स्वामी आत्मस्थानानन्द जी के जन्म शताब्दी समारोह को संबोधित किया। समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी जी के साथ बिताए समय को याद करते हुए स्वामी आत्मस्थानानन्द जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘यह आयोजन कई भावनाओं और यादों से ओतप्रोत है। मुझे हमेशा उनका आशीर्वाद मिला है, उनके साथ रहने का अवसर मिला। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं अंतिम क्षण तक उनके संपर्क में रहा।’

माँ काली को लेकर देखिये क्या बोले पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि रामकृष्ण मिशन की ये जागृत परंपरा रामकृष्ण परमहंस जैसी दैवीय विभूति की साधना से प्रकट हुई है। स्वामी रामकृष्ण परमहंस, एक ऐसे संत थे जिन्होंने माँ काली का स्पष्ट साक्षात्कार किया था, जिन्होंने माँ काली के चरणों में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था।

वो कहते थे – ये सम्पूर्ण जगत, ये चर-अचर, सब कुछ माँ की चेतना से व्याप्त है। यही चेतना बंगाल की काली पूजा में दिखती है। यही चेतना बंगाल और पूरे भारत की आस्था में दिखती है। इसी चेतना और शक्ति के एक पुंज को स्वामी विवेकानंद जैसे युगपुरुषों के रूप में स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने प्रदीप्त किया था। स्वामी विवेकानंद माँ काली की जो अनुभूति हुई, उनके जो अध्यात्मिक दर्शन हुए, उसने उनके भीतर असाधारण ऊर्जा और सामर्थ्य का संचार किया था। स्वामी विवेकानंद जैसा ओजस्वी व्यक्तित्व, इतना विराट चरित्र, लेकिन जगन्माता काली की स्मृति में, उनकी भक्ति में वो छोटे बच्चे की तरह विह्वल हो जाते थे।

भक्ति की ऐसी ही निश्छलता, और शक्ति साधना का ऐसा ही सामर्थ्य मैं स्वामी आत्मस्थानानन्द जी के भीतर भी दिखता था। और उनकी बातों में भी माँ काली की चर्चा होती रहती थी। और मुझे याद है, जब बेलूर मठ जाना हो, गंगा के तट पर बैठें हो और दूर माँ काली का मंदिर दिखाई देता हो, तोह स्वाभाविक है, एक लगाव बन जाता था। जब आस्था इतनी पवित्र होती है, तो शक्ति साक्षात् हमारा पथप्रदर्शन करती है। इसीलिए, माँ काली का वो असीमित-असीम आशीर्वाद हमेशा भारत के साथ है। भारत इसी आध्यात्मिक ऊर्जा को लेकर आज विश्व कल्याण की भावना से आगे बढ़ रहा है|

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि स्वामी आत्मस्थानानन्द जी को श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य, पूज्य स्वामी विजनानन्द जी से दीक्षा मिली थी। स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे संत का वो जाग्रत बोध, वो आध्यात्मिक ऊर्जा उनमें स्पष्ट झलकती थी। आप सभी भली-भांति जानते हैं कि हमारे देश में सन्यास की कितनी महान परंपरा रही है। संन्यास के भी कई रूप रहे हैं। वानप्रस्थ आश्रम भी सन्यास की दिशा में एक कदम माना गया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि संन्यास का अर्थ ही है – स्वयं से ऊपर उठकर समष्ठि के लिए कार्य करना, समष्ठि के लिए जीना। स्व का विस्तार समष्ठि तक। सन्यासी के लिए जीव सेवा में प्रभु सेवा को देखना, जीव में शिव को देखना यही तो सर्वोपरि है। इस महान संत परंपरा को, सन्यस्थ परंपरा को स्वामी विवेकानंद जी ने आधुनिक रूप में ढाला। स्वामी आत्मस्थानानन्द जी ने सन्यास के इस स्वरूप को जीवन में जिया, और चरितार्थ किया। उनके निर्देशन में बेलूर मठ और श्री रामकृष्ण मिशन ने भारत ही नहीं बल्कि नेपाल, बांग्लादेश जैसे देशों में भी राहत और बचाव के अद्भुत अभियान चलाए। उन्होंने निरंतर ग्रामीण क्षेत्रों में जन कल्याण के लिए काम किया, इसके लिए संस्थान तैयार किए। आज ये संस्थान गरीबों को रोजगार और जीवन यापन में लोगों की मदद कर रहे हैं। स्वामी जी गरीबों की सेवा को, ज्ञान के प्रचार प्रसार को, इससे जुड़े कामों को पूजा समझते थे। इसके लिए मिशन मोड में काम करना, नई संस्थाओं का निर्माण करना, संस्थानों को मजबूत करना, उनके लिए ये रामकृष्ण मिशन के आदर्श थे। जैसे हमारे यहाँ कहते हैं कि, जहां भी ईश्वरीय भाव है वहीं तीर्थ है। ऐसे ही, जहां भी ऐसे संत हैं, वहीं मानवता, सेवा यह सारी बातें केंद्र में रहते हैं। स्वामी जी ने अपने सन्यास जीवन से ये सिद्ध करके दिखाया।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सैकड़ों साल पहले आदि शंकराचार्य हों या आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद, हमारी संत परंपरा हमेशा ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का उद्घोष करती रही है। रामकृष्ण मिशन की तो स्थापना ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार से जुड़ी हुई है। स्वामी विवेकानंद ने इसी संकल्प को मिशन के रूप में जिया था। उनका जन्म बंगाल में हुआ था। लेकिन आप देश के किसी भी हिस्से में जाइए, आपको ऐसा शायद ही कोई क्षेत्र मिलेगा जहां विवेकानंद जी गए न हों, या उनका प्रभाव न हो।

उनकी यात्राओं ने गुलामी के उस दौर में देश को उसकी पुरातन राष्ट्रीय चेतना का अहसास करवाया, उसमें नया आत्मविश्वास फूंका। रामकृष्ण मिशन की इसी परंपरा को स्वामी आत्मस्थानानन्द जी ने अपने पूरे जीवन आगे बढ़ाया। उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपना जीवन खपाया, अनेक काम किए, और जहां भी वो रहे, वहाँ पूरी तरह रच बस गए। गुजरात में रहकर वो इतनी अच्छी गुजराती बोलते थे। और मेरा तो सौभाग्य रहा कि जीवन के अंत काल में भी जब उनसे बात होती थी तो गुजराती में होती थी।

मुझे भी उनकी गुजराती सुनना बहुत अच्छा लगता था। और मैं आज याद करना चाहता हूं कि जब कच्छ में भूकंप आया था तो एक पल भी उन्होंने नहीं लगाया और उसी समय, तब तो मैं राजनीति में किसी पद पर नहीं था, एक कार्यकर्ता के रूप में काम करता था। उस समय उन्होंने मेरे साथ सारी परिस्तिथि की चिंता, बात की, कि रामकृष्ण मिशन कच्छ में क्या काम कर सकता है। पूरे विस्तार से, और पूरे समय उनके मार्गदर्शन में उस समय कच्छ में भूकंप पीड़ितों को राहत देने के लिए बहुत सारे काम जाग्रुत हुए। इसीलिए, रामकृष्ण मिशन के संतों को देश में राष्ट्रीय एकता के संवाहकों, इस रूप में हर कोई जानता है। और, जब वो विदेश जाते हैं, तो वहाँ वो भारतीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक खेती सम्मेलन में हिस्सा लिया