मानवी दुर्बुद्धि से ही उपजी हैं आज की समस्याएं..

विचार पद्धति में विकृति आने से ही अध:पतन के अगणित आधार उत्पन्न हुए हैं।अभाव,दारिद्र्य, शोक, संताप,विग्रह विद्वेष की विभीषिकायें विकटतम होती चली जा रही हैं। उनका मूल कारण विचारणा का स्तर गिर जाना भर है। आज हम व्यक्ति को अनेक व्यथा वेदनाओं में डूबा हुआ और समाज को अनेक समस्याओं में उलझा हुआ पाते हैं। सर्वत्र अशांति आशंका और असंतोष का जो वातावरण देखते हैं उसके पीछे एक ही कारण है, मानवीय दुर्बुद्धि का बढ़ जाना और उसका दुष्ट प्रवृत्तियों की ओर मुड़ जाना। यदि यह प्रवाह रोका जा सके, लोगों को उच्च आदर्शवादिता की रीति-नीति समझाने के लिए तैयार किया जा सके तो परिस्थितियां बिल्कुल उलट सकती हैं।

जो क्षमता आज विघटनात्मक, अनीतिमूलक क्रियाकलापों में लगी है वह यदि उलट कर सर्जनात्मक और सद्भाव संवर्धन में लग जाए तो देखते देखते जादू की तरह सारी परिस्थितियों का कायाकल्प हो सकता है। वर्तमान नारकीय वातावरण देखते-देखते स्वर्गीय सुषमा में बदल सकता है। इसलिए जिस अति महत्वपूर्ण तथ्य की ओर दूसरों का ध्यान नहीं है उसे अपने हाथ में लेना चाहिए और दुर्बुद्धि के उन्मूलन एवं सद्बुद्धि के संस्थापन में प्राणपण से जुट जाना चाहिए। यह प्रयास आंखों से दिखाई न पड़ने के कारण सस्ती वाहवाही भले ही न दिला सके पर अपनी उपयोगिता के कारण उसका महत्व इतना बड़ा है कि उसके ऊपर परमार्थ कहे जाने वाले समस्त कार्यों को न्योछावर किया जा सकता है।

युग निर्माण योजना का ज्ञान यज्ञ अभियान इतिहास में उपलब्ध अब तक के सबसे महान सृजनात्मक कार्यों में से एक है, इसकी कार्यपद्धति यह है कि घर-घर जन जन में संपर्क स्थापित कर व्यक्ति और समाज के सामने प्रस्तुत अगणित समस्याओं का स्वस्थ और सही समाधान समझाया जाए।

हजार वर्ष की गुलामी के बाद भारतीय जनता की विचार पद्धति में बड़ी विकृति आई है और उससे उसमें से अधिकांश मान्यताएं निरर्थक ही नहीं अनर्थमूलक भी बन गई हैं पर लोग उन्हें परंपरा मानकर छाती से चिपकाए बैठे हैं और तरह तरह के कष्ट सहते हैं। ज्ञान यज्ञ का प्रयोजन व्यक्ति की विवेक शीलता को जागृत करना है जो उचित अनुचित का भेद समझ सके और जो अवांछनीय है उसे हटाने तथा औचित्य को स्वीकार करने का साहस जगा सके।

रामबाबू मिश्रा
पत्रकार