सदबुद्धि की कथा है हनुमान चालीसा

कारगार में पड़े पड़े तुलसीदास जी सोचने लगे कि संकट में मनुष्य का साथी कौन होता है। तब हनुमान जी ने उन्हें सुझाया कि संकट में मनुष्य की सदबुद्धि ही मनुष्य की साथी होती है। क्योंकि यदि सदबुद्धि नहीं होगी तो मनुष्य में दुर्बुद्धि होगी और “जंहा कुमति तंहा विपत्ति निधाना” . कुमति आने से भगवान का भजन छूट जाता है। भगवान का चिंतन भजन छूटना बड़ी विपत्ति को आमंत्रित करता है। “कह हनुमंत विपत्ति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई। ” इसलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा के दूसरे दोहे में हनुमान जी से सदबुद्धि की याचना की है। क्योंकि शरीर में मस्तिष्क (खोपड़ी) तो है। परन्तु इसमें सदबुद्धि भगवान की ही देन है। जिसको अंतः करण से सद्द प्रेरणा मिलती है जीवन में वही सफल हो पाता है।

इसीलिए श्री हनुमान जी से उन्होंने ” बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार” कहा। आगे यह भी कह दिया कि आप “कुमति निवारे सुमति के संगी हैं” . श्री हनुमान जी ने बचपन में ही सूर्य भगवान को अपने अन्तः करण में धारण कर लिया था। सूर्य भगवान जो कि सदबुद्धि के देवता हैं। उन्हें अन्तः करण में धारण करना सदबुद्धि की उपासना है। गायत्री मन्त्र जो कि सदबुद्धि का मन्त्र है उसे वे धारण भी करते हैं और दूसरों को धारण भी कराते हैं। इसीलिए उन्हें कुमति नेवरि सुमति के संगी कहा है। गायत्री मन्त्र जप के साथ हनुमान जी की उपसना विशेष फलदाई होती है। इसके साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ विशेष फलदाई है।

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