हनुमान चालीसा घोर तांत्रिक

हनुमान चालीसा घोर तांत्रिक किन्तु तंत्र के प्रतिबंधों से मुक्त है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री हनुमान चालीसा की रचना उस समय की जिस समय वे अकबर के कारगर में बंद थे। उस समय पूजा करना या कोई उपचार संभव नहीं था। कोई बड़ी रचना भी नही लिखी जा सकती थी। जो भी उपचार करें उसका ही अनुशरण करके आगे सभी लोग लाभान्वित हों इसके लिए कम साधन समय में कोई उपचार हो ऐसा उपाय किया जाय यह सोंचकर उन्होंने तांत्रिक तरीके का प्रयोग किया जिसे साबरी जैसा उपचार कहा जा सकता है। जिस प्रकार साबर मन्त्र घोर तांत्रिक होते हुए भी तांत्रिक प्रतिबंधों अर्थात उत्कीलन, उन्मीलन, न्यास आदि से मुक्त होते हैं। उसी प्रकार श्री हनुमान चालीसा की चौपाइयां और दोहे भी जिसके केवल पथ का ही विधान है। यह बार बार पढ़ कर “जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ” यह कहकर गोस्वामी जी ने सबको संकट से मुक्त होने के लिए सरल उपाय का मार्गदर्शन दिया।

संकट से मुक्त होने का साधना विधान का संकेत इसी चालीसा में ही है।

अनेक प्रकार की समस्याओं के समाधान के लिए भी हनुमान चालीसा के अंदर ही इन्ही चालीस चौपाइयों में ही साधना का तरीका लिखा हुआ है। जैसे किसी भी मन्त्र के अनुष्ठान में तत्संबंधित देवता का ध्यान ही महत्वपूर्ण होता है। मनोकामना और कर्मकाण्ड के अनुसार ही देवता का उग्र शांत आदि स्वरूपों का ध्यान करते हैं स्वयं गोस्वामी जी ने माता सीता के संकट मोचन के लिए श्री राम चरित मानस के सुन्दरकाण्ड के आरम्भ में “अतुलित बलीधामं हेमशैलाभ देहं” का ध्यान किया। उसी प्रकार चालीसा में भी लिखा है कि भयंकर संकट में होने पर पाठ के समय उसी स्वरूप का ध्यान करना चाहिए “संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा” उसी बलबीरा स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।

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