हनुमान चालीसा में संकट मिटने का मूल सिद्धांत

हनुमान चालीसा में संकट मिटने का मूल सिद्धांत है . मनुष्य के ऊपर संकट आने का मूल कारण उसके द्वारा किये गए पूर्व जन्म अथवा इस जन्म के पाप हैं। उनका समन या तो संकट भोगकर अथवा उसके अनुरूप तप करके ही मिटाया जा सकता है। श्री हनुमान जी भी संकट से उसे ही मुक्त करते हैं जो उस सिद्धांत का पालन करता है। “संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै” मन क्रम वचन तीनों बातें महत्वपूर्ण हैं। मन से ध्यान, वचन से पाठ, तथा कर्म से प्रायश्चित अर्थात अपने कर्म से परमार्थ किया जाय।

परन्तु कर्म केवल धनोपार्जन के लिए किया जाता है। तो उस धन को उस कार्य में लगाया जाय जिसे जीवन भर श्री हनुमान करते रहे हैं। श्री हनुमान जी ने भगवान श्रीराम जी के साथ वैदिक संस्कृति के उत्थान रामराज्य की स्थापना के लिए काम किया।” रामराज्य में सब नरहि करहि परस्पर प्रीती, चलहि स्वधर्म निरति श्रुति नीती। धर्म संस्कृति के उत्थान में धन लगता है वही सार्थक होता है। उसी से श्री हनुमान जी प्रसन्न होते हैं।

हनुमान चालीसा में संकट मिटने का मूल सिद्धांत है क्योकि जो भी हनुमान चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव के साथ करता है उसके सभी संकट अपने आप ही दूर हो जानते हैं। हनुमान जी की कृपा उस व्यक्ति पर सदैव बनी रहती है जो हनुमान चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव के साथ करते हैं।

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