हमें नेता नहीं सृजेता चाहिए

देश एवं समाज को उन्नत बनाने के लिए तथा उसे श्रेष्ठ और समुन्नत मार्ग पर बढ़ाने के लिए विशिष्ट व्यक्तियों की आवश्यकता होती है, यह गुरुतर भार सामान्य व्यक्ति नहीं संभाल सकता, इसके लिए प्रतिभाशाली नेतृत्व गुण संपन्न महामानव चाहिए वही समाज को अच्छी दिशा दे सकने में समर्थ हो सकता है। “प्रभावशाली नेता केवल मंच संभालने मात्र से कोई नहीं बन जाता उन्हें कुछ कर्तव्य करने होते हैं और कुछ दायित्व भी निभाने होते हैं समाज को उन्नत मार्ग पर बढ़ाने के लिए नेता को स्वयमेव चरित्रवान होना पड़ता है साथ ही समाज के चरित्र को ऊंचा उठाना होता है इन दोनों कार्यों के अभाव से कोई भी समाज उन्नति के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता।” बिना नेता के समाज नहीं होता और नेता के लिए समाज का होना आवश्यक है किंतु आज तो किसी गली कूचे में जिस कंकड़ पत्थर को उठा लीजिए वही नेता होगा। वर्षा में जिस तरह मेढकों की बाढ़ आ जाती है उसी तरह प्रजातंत्र में नेताओं की बाढ़ आ गई है।

आज हम स्वराज को भोग नहीं पा रहे हैं क्योंकि नेता हमको चैन से बैठने नहीं देता, जहां कोई समस्या नहीं वहां समस्या पैदा कर देता है, नई-नई उलझने उत्पन्न कर देता है,हम सुख की सांस भी नहीं ले पाते हैं। यह बात निश्चित है कि देश व समाज का उत्थान नेता पर निर्भर करता है,नेता यदि पथभ्रष्ट हुआ तो देश पतन की ओर अग्रसर हो जाता है इसलिए कम से कम अपनी सुरक्षा के विचार से ही सही हमको बहुत छानबीन कर अपना नेता चुनना चाहिए। आज की हमारी बहुत ही परेशानियों की जड़ हमारा गलत नेता भी हो सकता है इसलिए नेता वही हो जिसमें पवित्रता, मित्रता, त्याग,सत्य, दूसरे का उपकार मानकर उसको याद रखना और शील संपन्नता आदि गुण हो, जो व्यक्ति नीति का पालन करे और दूसरों को भी नीति पर चलावे वही नेता होगा। सम्यक रुप से सुमार्ग पर चलाने वाली वस्तु का नाम नीति है, नीति को जानने वाला नेता होता है जो अपनी नीति को अनुशासन पूर्वक नहीं मनवा सकता वह नेता नहीं हो सकता।

ऐसा प्रतीत होता है कि स्वतंत्रता मिलने के कुछ दिनों बाद ही अपने देश में निस्पृह नेताओं की वह पीढ़ी काल के गर्भ में समा गई जो बिना किसी स्वार्थ के अपने श्रम प्रतिभा के जल से समाज एवं देश को अभिसिंचित करती रहती थी। आज गली मोहल्ले चौराहों होटल बाजार क्लबों में चक्कर काटते पान चबाते जोशीले भाषण देते बरसाती मेंढकों की तरह टर्र- टर्र करते उन तथाकथित नेताओं के दर्शन किए जा सकते हैं जो किसी न किसी पद या राजनीतिक पार्टी की छत्रछाया में पल रहे हैं ऐसे नेताओं की भीड़ बढ़ रही है नागरिक कम होते जा रहे हैं जो यह कहते हैं कि पद अथवा सत्ता के बिना कुछ नहीं किया जा सकता अथवा पैसे के बिना कुछ भी नहीं हो सकता उनकी नियत पर स्वाभाविक रूप से शक होता है। गांधी, विनोबा, लोकनायक जयप्रकाश, ईश्वर चंद, राजा राममोहन राय जैसे अगणित नेता पद प्रतिष्ठा से कोसों दूर रहकर समाज व संस्कृति के लिए काम करते रहे।

अतः समय की मांग आंदोलनकारी नेताओं की नहीं ऐसे लोक शिक्षकों की है जो जनमानस में जागरण का आलोक उत्पन्न करने का अनवरत प्रयत्न करने में अथक रूप से लगे रहें। इसलिए समय की पुकार है कि हमें नेता नहीं सृजेता चाहिए, कहना न होगा कि यह महान कार्य देश के भूखे, स्वार्थ लिप्सा में डूबे नेताओं से नहीं भावनाशील सृजेताओं से ही पूर्ण हो सकेगा जो नीव का पत्थर बन सकें, बीज की भांति गलत सकें, वृक्षों को अनवरत पोषण देते रहने वाली भूमिगत जड़ों की तरह निर्माण के लिए भूमिका निभा सके और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और यश लिप्साओं से बच सकें। हम सभी को नेताओं से सृजेता बनने का अनुरोध करना चाहिए और सृजेताओं का ही सम्मान और समर्थन करना चाहिए। हमें नेता नहीं सृजेता चाहिए .

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