हिटलर विरोध का ढोंग करते है वामपंथी

अभय प्रताप सिंह की कलम से :

विचारों के अस्पताल में आई सी यू  में पड़े वामपंथी दुनिया भर में तिरस्कृत होकर भी जिस बेशर्मी के साथ मंच पर खड़े होते है , उसकी वाक़ई में दाद देनी पड़ेगी ।  कन्हैया कुमार , प्रकाश करात , सीता राम येचुरी , उम्र खालिद , शेहला राशिद , स्वर भास्कर या कोई भी वामपंथी धूर्त जब मंच पर पहुच कर माइक सम्हालते है तो अपनी बातों की शुरुआत हिटलर , मुसोलिनी को गरियाने से ही करते है । जबरदस्ती ये सिद्ध करने का असफल प्रयास करते है कि संघ की सोच हिटलर और मुसोलिनी से प्रेरित है । इनके इसी लच्छेदार झूठ पे वहाँ सामने श्रोताओं में बैठे दो चार नए लाल वामी  खूब तालियां पिटेंगे , खूब चिल्लायेंगे , दरअसल उन्हें पता है कि यही 2 चार झूठ के सहारे उनके विचार का बुढापा कट रहा है ,और इसी झूठ के सहारे वमियो ने दुनिया के कई देशों में सत्ता और ख्याति दोनो प्राप्त की  । लेकिन कहावत है कि झूठ के पाव नही होते , तो ये झूठ आखिर कब तक चलता , आधुनिक विश्व ने जैसे ही इन वामपंथियो के इतिहासकारों की कहानियों की पड़ताल की तो उन्हें इस सत्य का ज्ञान हुआ कि ये तो आज तक केवल झूठ बेचते आये है ।

आप ये समझिये की वामपंथियो के पास खुद का कोई दिमाग नही होता ये सिर्फ उतना ही सोचते या बोलते जितना इनके पूर्वजों ने इन्हें सिखाया जिसमे कार्ल मार्क्स , लेनिन , स्टॅलिन , माओ जेदांग ,चे ग्वेरा शामिल है । हिटलर ने जब पूरी जर्मनी को जर्मन गौरव का स्वप्न दिखा कर युद्ध मे झोंक दिया था तब उस दौर में कई तानाशाह थे , जर्मनी में हिटलर , इटली के मुसोलिनी , जापान के तोजो , और सोवियत के स्टालिन , ये चारों एक साथ ही थे और इंग्लैंड को हराने के लिए प्रतिबद्ध थे । अब क्योकि स्टालिन दुनिया भर के वामपंथियो के लिए खुदा थे और सोवियत वामपंथियो की पुण्यभूमि थी , इसलिए जब तक स्टालिन जर्मनी के साथ रहे , तब तक भारत मे बैठे लम्पट वामी ब्रिटिश शासन को कोसते रहे , अंग्रेजो को  साम्राज्यवादी , पूंजीवादी , अत्याचारी कई संज्ञा देते रहे । लेकिन तभी यूरोप में एक बड़ा परिवर्तन आया , हिटलर ने अपनी सेना पॉलैंड से वापस बुला कर अचानक सोवियत पर आक्रमण कर दिया , यहाँ से स्टालिन और हिटलर के बीच दुश्मनी की शुरुआत हो गयी और स्टॅलिन की लाल सेना  जाकर मित्र राष्ट्रों के साथ मिल गयी । वहाँ यूरोप में जो हो रहा था उसका असर सीधे भारत मे देखने को मिला , जो वामपंथी अभी तक अंग्रेजो को गालियाँ देते नही थकते थे वो अचानक अंग्रेजो पर चुप हो गए , अब उनके लिए हिटलर , मुसोलिनी , तोजो और सुभाष चंद्र बोस खलनायक हो गए ।

फिर वामपंथियो ने अपनी खीज में नई नई मनोहर कहानियां गढ दी , जिसे आज भी सत्य मान कर जे एन यू और अन्य स्थानों के वामपंथी नारे लगाते रहते है , एक बार कन्हैया कुमार ने एक भाषण में कह दिया था कि मुसोलिनी से मिलने गोलवरकर गए थे , जो कि एक कोरा झूठ है , गोलवारकर और मुसोलिनी की कभी मुलाकात नही हुई । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक ने उस समय हिटलर और मुसोलिनी के कृत्यों की काफी निंदा की ।

आज शाहीन बाग हो , जे एन यू हो , जामिया  या अलीगढ़ विश्वविद्यालय सब जगह एक नारा लगता है – जो हिटलर की चाल चलेगा , वो हिटलर की मौत मरेगा । अब सवाल ये है कि हिटलर की चाल कौन चल रहा है , हिटलर अपने विरोधियों को हमेशा के लिए मिटा देने के मंत्र पर कार्य करता था , जिसका अनुसरण हर वामपंथी ने किया , चाहे वो माओ हो , स्टॅलिन हो या कास्त्रो हो या वर्तमान में केरल के वामपंथी हो , हिटलर कहता था कि यदि एक झूठ को 100 बार बोलो तो लोग उसे सच मान लेते है , ये काम भी वामपंथी सिनेमा , अखबार , पुस्तको ,भाषणों के माध्यम से  पिछले 90 सालों से लगातार कर रहे है । इन सब कृत्यों को देखकर तो यही कहा जा सकता है कि वामपंथी केवल दिखावा करने के लिए हिटलर का विरोध करते है ।