कूल्हि कुकुरा जइहन कासी
बेखदी-बदी के बात भइल बकबक में सगरी रात गइल फेंकरत बाड़न सत्यानासी कूल्हि कुकुरा जइहन कासी॥ इहाँ-उहाँ ले झोंझ बन्हाता महिमा सगरों रोज गवाता फेंकत पासा बाड़न बासी कूल्हि कुकुरा जइहन कासी ॥ लुटलें खइलें गात बनवलें दिनही घुसि सेन्ह में गवलें सभके मालुम इनका रासी कूल्हि कुकुरा जइहन कासी ॥ नया-नया कुल ढोंग रचाता जहाँ-तहाँ बस झूठ बँचाता सोझवें देखीं लेत उबासी कूल्हि कुकुरा जइहन कासी ॥ रंग-रूप सनमान बिगड़लें…
Read More