राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने कोविड-19 को लेकर राज्यपालों और उपराज्यपालों से बात की

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इस बात की पुष्टि करते हुए कि देश के लोगों ने कोविड-19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में अनुकरणीय साहस, अनुशासन और एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है, दो घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है जिससे कारण इन प्रयासों को झटका लगा है, पहला आनंद विहार में प्रवासी श्रमिकों का जमावड़ा और दूसरा निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात का आयोजन है, दोनों ही मामले दिल्ली के हैं।

राष्ट्रपति ने उपराष्ट्रपति, एमं वेंकैया नायडू के साथ आज राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों के राज्यपालों, उपराज्यपालों और प्रशासकों के साथ एक वीडियो-कॉन्फ्रेंस की और भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा कोविड-19 के प्रकोप से निपटने के लिए की जा रही कार्यवाही में योगदान देने के तरीकों पर चर्चा की। राष्ट्रपति ने इस बात को सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर बल दिया कि देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कोई भी भूखा न रहे।

अपने उद्घाटन भाषण में, राष्ट्रपति ने कहा कि 27 मार्च को आयोजित किए गए पिछले वीडियो कांफ्रेंस में उनके बीच रचनात्मक चर्चाएं हुई थीं और कई उपयोगी सुझाव मिले थे। विभिन्न राज्यों द्वारा किए जा रहे कुछ सराहनीय पहल, जो पिछले सम्मेलन के दौरान संज्ञान में आए थे, जिसमें सेवानिवृत्त डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों को शामिल करना, मनोवैज्ञानिकों की विशेषज्ञता का उपयोग करना, युवाओं को स्वयंसेवक बनने के लिए आमंत्रित करना, दैनिक समीक्षा बैठकों के साथ स्थिति की निगरानी करना, भूख सहायता के लिए हेल्प-लाइन की स्थापना, राहत कार्यों और क्वारंटाइन सुविधाओं के लिए स्टेडियमों का उपयोग करना, जागरूकता फैलाने के लिए विश्वविद्यालयों को शामिल करना और होम डिलीवरी को प्रोत्साहित करना मुख्य रूप से शामिल हैं।

इस संकट के दौरान बेघर, बेरोजगार और समाज के कमजोर वर्गों के लिए उत्पन्न हो रही समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, राष्ट्रपति ने कहा कि हमें उनकी आवश्यकताओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनना पड़ेगा। उन्होंने सम्मेलन के अन्य प्रतिभागियों को आमंत्रित किया कि वे यह सुनिश्चित करने के तरीकों और साधनों के बारे में विचार करें जिससे कि कोई भूखा न रहे। इस बात को स्वीकार करते हुए कि यह एक बहुत बड़ी चुनौती है, उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि सभी राज्यपाल केंद्र और राज्य स्तर पर किए जा रहे प्रयासों में योगदान देंगें और समाज के सभी वर्गों को इसमें शामिल करेंगे।

इसके अलावा, यह सुनिश्चित करते समय कि भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुएं जरूरतमंदों को उपलब्ध कराई जा रही हैं, इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सामाजिक दूरी के मामले में कोई समझौता न किया जाए, उन्होंने कहा।

राष्ट्रपति ने पिछले सम्मेलन का उल्लेख किया, जिसमें सरकार के प्रयासों के पूरक के रूप में रेड क्रॉस और अन्य स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका पर चर्चा की गई थी। उन्होंने मानवीय चुनौती से मुकाबला करने में स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ-साथ निजी क्षेत्रों की अधिकतम भागीदारी को शामिल करने और प्रोत्साहन देने के लिए सुझाव आमंत्रित किए।

अपने समापन भाषण में उन्होंने कहा, महामारी से निपटने के लिए हमारे अभी तक के प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं, कुछ घटनाओं के बावजूद, और हम दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं।

राष्ट्रपति ने देश के नागरिकों के धैर्य और सहयोग की सराहना की। उन्होंने डॉक्टरों, सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को धन्यवाद दिया जो अपने जीवन पर गंभीर खतरा बरकरार होने के बावजूद समाज, राष्ट्र और मानवता की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने अपना पूर्ण भरोसा भी जताया कि देश की जनता पूरी सतर्कता और दृढ़ निश्चय के साथ इस महामारी के खिलाफ अभियान को जारी रखेगी।

उपराष्ट्रपति, जिन्होंने इस सम्मेलन का संचालन किया, ने गरीबों की दुर्दशा में कमी लाने के लिए इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी, सामाजिक संगठनों और निजी क्षेत्र के स्वयंसेवकों को इसमें शामिल करने पर जोर दिया। उन्होंने राज्यपालों/ उपराज्यपालों और प्रशासकों से आग्रह किया कि वे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के अधिनायकों को आगे आने और समाज के सबसे कमजोर वर्गों, विशेष रूप से किसानों का समर्थन करने के लिए राजी करें, क्योंकि यह लॉकडाउन कई राज्यों में फसल कटाई के मौसम के साथ मेल खा रहा है। उन्होंने कहा कि यद्यपि केन्द्र और राज्य सरकारें लोगों के दुखों को दूर करने के लिए पर्याप्त उपाय कर रही हैं, लेकिन यह समाज के अभिजात वर्ग के लिए शाश्वत मानवीय मूल्यों के लिए एक सेवा होगी कि वे संकट के इस घड़ी में आगे आएं और गरीब और कमजोर वर्गों की मदद करें।