उत्तर प्रदेश में ग्रामीण पेयजल आपूर्ति परियोजनाओं के शिलान्यास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी का पूरा सम्बोधन

देखिए जीवन की एक बड़ी समस्‍या जब हल होने लगती है तो एक अलग ही विश्‍वास झलकने लगता है। ये विश्‍वास आप सभी के साथ जो संवाद का कार्यक्रम बनाया गया,टेक्‍नोलॉजी में बाधा के कारण हर किसी से मैं बात नहीं कर पाया, लेकिन मैं आपको देख पा रहा था। जिस प्रकार से आप जैसे घर में बहुत बड़ा उत्‍सव हो और जिस प्रकार से कपड़े पहनते हैं घर में, साज-सज्‍जा, वो सब मुझे दिख रहा था। मतलब की कितना उत्‍साह और उमंग भरा पड़ा है आपके अंदर वो मैं यहां से देख रहा था। ये उत्‍साह, ये उमंग, ये अपने-आप में ही इस योजना का मूल्‍य कितना बड़ा है, पानी के प्रति आप लोगों की संवेदनशीलता‍ कितनी है, परिवार मैं जैसे शादी-ब्‍याह हो, ऐसा माहौल आपने बना दिया है।

इसका मतलब हुआ कि सरकार आपकी समस्‍याओं को भी समझती है, समस्‍याओं के समाधान में सही दिशा में आगे भी बढ़ रही है और जब आप इतनी बड़ी मात्रा में जुड़े हैं, उत्‍साह-उमंग के साथ जुड़े हैं तो मुझे पक्‍का विश्‍वास है कि योजना- सोचा है उससे जल्‍दी होगी, हो सकता है पैसे भी बचा लें आप लोग और अच्‍छा काम करें। क्‍योंकि जनभागीदारी होती है तो बहुत बड़ा परिणाम मिलता है।

मां विंध्यावासिनी की हम सभी पर विशेष कृपा है कि आज इस क्षेत्र के लाखों परिवारों के लिए इस बड़ी योजना की शुरुआत हो रही है। इस योजना के तहत लाखों परिवारों को उनके घरों में नल से शुद्ध पेयजल मिलेगा। इस आयोजन में हमारे साथ जुड़ी हुईं उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी,सोनभद्र में उपस्थित उत्‍तर प्रदेश के यशस्‍वी मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी, केंद्रीय मंत्रीमंडल में मेरे सहयोगी श्रीमान गजेंद्र सिंह जी,यूपी सरकार में मंत्री भाई महेंद्र सिंह जी,अन्य मंत्रिगण,सांसद और विधायकगण,विंध्य क्षेत्र के सभी बहनों और वहां पर उपस्थित सभी भाइयों का मैं बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं !!

साथियों,

विंध्य पर्वत का ये पूरा विस्तार पुरातन काल से ही विश्वास का,पवित्रता का,आस्था का एक बहुत बड़ा केंद्र रहा है। उत्‍तर प्रदेश में तो कई लोग जानते हैं, रहीमदास जी ने क्‍या कहा था। रहीम दास जी ने भी कहा- ‘जापर विपदा परत है, सो आवत यही देश!’

 

भाइयों और बहनों,रहीमदास जी के इस विश्वास का कारण, इस क्षेत्र के अपार संसाधन थे, यहां मौजूद अपार संभावनाएं थीं। विंध्यांचल से शिप्रा,वेणगंगा,सोन,महानद,नर्मदा,कितनी ही नदियों की धारा वहां से निकलती हैं। मां गंगा,बेलन और कर्मनाशा नदियों का भी आशीर्वाद इस क्षेत्र को प्राप्त है। लेकिन आज़ादी के बाद दशकों तक अगर उपेक्षा का शिकार भी कोई क्षेत्र हुआ है तो यही क्षेत्र सबसे अधिक हुआ है। विंध्याचल हो,बुंदेलखंड हो,ये पूरा क्षेत्र हो,संसाधनों के बावजूद अभाव का क्षेत्र बन गया। इतनी नदियां होने के बावजूद इसकी पहचान सबसे अधिक प्यासे और सूखा प्रभावित क्षेत्रों की ही रही। इस वजह से अनेकों लोगों को यहां से पलायन करने पर भी मजबूर होना पड़ा।

साथियों,

बीते वर्षों में विंध्यांचल की इस सबसे बड़ी परेशानी को दूर करने करने के लिए निरंतर काम किया गया है। यहां घर-घर जल पहुंचाने और सिंचाई की सुविधाओं का निर्माण इसी प्रयास का एक बहुत अहम हिस्सा है। पिछले साल बुंदेलखंड में पानी से जुड़ी बहुत बड़ी परियोजना पर काम शुरु किया गया था, जिस पर तेजी से काम चल रहा है। आज साढ़े 5 हज़ार करोड़ रुपए कि विंध्य जलापूर्ति योजना का शिलान्यास भी हुआ है।

इस परियोजना के लिए सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों के लाखों साथियों को,और विशेषतौर पर माताओं-बहनों और बेटियों को बहुत-बहुत बधाई का ये अवसर है। और आज जब मैं इस क्षेत्र के लोगों से बात करता हूं तो स्‍वाभाविक है कि इस अवसर पर मैं मेरे पुराने मित्र स्वर्गीय सोनेलाल

पटेल जी को भी याद कर रहा हूं। वो इस इलाके की पानी की समस्या को लेकर बहुत चिंतित रहते थे। इन योजनाओं को शुरू होते देख,आज सोनेलाल जी की आत्‍मा जहां भी होगी उनको बहुत संतोष होता होगा और वे भी हम सब पर आर्शीवाद बरसाते होंगे।

भाइयों और बहनों,

आने वाले समय में जब यहां के 3 हज़ार गांवों तक पाइप से पानी पहुंचेगा तो 40 लाख से ज्यादा साथियों का जीवन बदल जाएगा। इससे यूपी के,देश के हर घर तक जल पहुंचाने के संकल्प को भी बहुत ताकत मिलेगी। ये परियोजना कोरोना संक्रमण के बावजूद विकास यात्रा को तेज़ी से आगे बढ़ाते उत्तर प्रदेश का भी एक उदाहरण है। पहले जो लोग उत्‍तर प्रदेश के विषय में धारणाएं बनाते थे, अनुमान लगाते थे; आज जिस प्रकार से उत्‍तर प्रदेश में एक के बाद एक योजनाएं लागू हो रही हैं, उत्‍तर प्रदेश के, उत्‍तर प्रदेश की सरकार के, उत्‍तर प्रदेश सरकार के कर्मचारियों की एक छवि पूरी तरह बदल रही है।

इस दौरान जिस प्रकार यूपी में कोरोना से मुकाबला किया जा रहा है,बाहर से गांव लौटे श्रमिक साथियों का ध्यान रखा, रोज़गार का प्रबंध किया गया,ये कोई सामान्‍य काम नहीं है जी। इतने बड़े प्रदेश में इतनी बारीकी से एक साथ इतने मोर्चों पर काम करना, उत्‍तर प्रदेश ने कमाल करके दिखाया है। मैं उत्‍तर प्रदेश की जनता को, उत्‍तर प्रदेश की सरकार को और योगीजी की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हर घर जल पहुंचाने के अभियान को अब करीब-करीब एक साल से भी ऊपर समय हो गया है। इस दौरान देश में 2 करोड़ 60 लाख से ज्यादा परिवारों को उनके घरों में नल से शुद्ध पीने का पानी पहुंचाने का इंतजाम किया गया है। और इसमें लाखों परिवार हमारे उत्तर प्रदेश के भी हैं।

हम अपने गांव में रहने वाले गांववासी हमारे भाइयों और बहनों के लिए,शहरों जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराने की निरंतर कोशिश कर रहे हैं। आज जो परियोजनाएं शुरू हो रही हैं, उससे भी इस अभियान को और गति मिलेगी। इसके अलावा अटल भूजल योजना के तहत पानी के स्तर को बढ़ाने के लिए जो काम हो रहा है, वो भी इस क्षेत्र को बहुत मदद करने वाला है।

भाइयों और बहनों,

हमारे यहां कहा जाता है, एक पंथ, दो काज। लेकिन आज जो योजनाएं बनाई जा रही हैं,वहां तो एक पंथ अनेक काज, उनसे अनेक लक्ष्य सिद्ध हो रहे हैं। जल जीवन मिशन के तहत घर-घर पाइप से पानी पहुंचाने की वजह से हमारी माताओं-बहनों का जीवन आसान हो रहा है। इसका एक बड़ा लाभ गरीब परिवारों के स्वास्थ्य को भी हुआ है। इससे गंदे पानी से होने वाली हैज़ा,टायफायड, इंसेफ्लाइटिस जैसी अनेक बीमारियों में भी कमी आ रही है। ,

यही नहीं इस योजना का लाभ इंसानों के साथ-साथ पशुधन को भी हो रहा है। पशुओं को साफ पानी मिलता है तो वो भी स्वस्थ रहते हैं। पशु स्वस्थ रहें और किसान को,पशुपालक को परेशानी ना हो,इस उद्देश्य को लेकर भी हम आगे बढ़ रहे हैं। यहां यूपी में तो योगी जी की सरकार के प्रयासों से जिस प्रकार इंसेफ्लाइटिस के मामलों में कमी आई है, उसकी चर्चा तो दूर-दूर तक है। एक्‍सपर्ट लोग भी इसकी चर्चा करते हैं। मासूम बच्चों का जीवन बचाने के लिए योगी जी और उनकी पूरी टीम को मैं मानता हूं हर उत्‍तर प्रदेश वासी इतने आर्शीवाद देता होगा, इतने आर्शीवाद देता होगा शायद जिसकी हम कल्‍पना भी नहीं कर सकते। जब विंध्यांचल के हजारों गांवों में पाइप से पानी पहुंचेगा,तो इससे भी इस क्षेत्र के मासूम बच्चों का स्वास्थ्य सुधरेगा,उनका शारीरिक और मानसिक विकास और बेहतर होगा। इतना ही नहीं, जब शुद्ध पानी मिलता है तो कुपोषण के खिलाफ जो हमारी लड़ाई है, पोषण के लिए हम जो मेहनत कर रहे हैं, उसके भी अच्‍छे फल इसके कारण मिल सकते हैं।

साथियों,

जल जीवन मिशन सरकार के उस संकल्प का भी हिस्सा है, जिसके तहत स्वराज की शक्ति को गांव के विकास का माध्यम बनाया जा रहा है। इसी सोच के साथ ग्राम पंचायत को,स्थानीय संस्थाओं को अधिक से अधिक अधिकार दिए जा रहे हैं। जलजीवन मिशन में पानी पहुंचाने से लेकर पानी के प्रबंधन और रख-रखाव पर भी पूरा जोर है और इसमें भी गांव के लोगों की भूमिका बहुत अहम है। गांव में पानी के स्रोतों के संरक्षण को लेकर भी काम किया जा रहा है।

सरकार एक साथी की तरह,एक सहायक की तरह, आपकी विकास यात्रा में एक भागीदार की तरह आपके साथ है। जल जीवन मिशन ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जो गरीबों के पक्के घर बन रहे हैं, उसमें भी यही सोच प्रदर्शित होती है। किस क्षेत्र में कैसा घर हो,किस सामान से घर बने,पहले की तरह ये अब दिल्ली में बैठकर तय नहीं होता है। अगर किसी आदिवासी गांव में विशेष परंपरा के घर बनते हैं,तो वैसे ही घर बने-दिल्‍लीवाले सोचते हैं वैसे नहीं, वहां का आदिवासी जो चाहेगा, जैसा चाहेगा, जैसा उसका रहन-सहन है, वैसा घर बने, ये सुविधा दी गई है।

भाइयों और बहनों,

जब अपने गांव के विकास के लिए,खुद फैसले लेने की स्वतंत्रता मिलती है,उन फैसलों पर काम होता है,तो उससे गांव के हर व्यक्ति का आत्मविश्वास बढ़ता है। आत्मनिर्भर गांव,आत्मनिर्भर भारत के अभियान को उसके कारण बहुत बड़ा बल मिलता है। इससे लोकल स्तर पर पैदा होने वाले सामान की खपत ज्यादा होती है। लोकल स्तर पर ही जो कुशल लोग हैं,उनको रोज़गार मिलता है। राजमिस्त्री हों,फिटर हों,प्लंबर हों,इलेक्ट्रिशियन हों,ऐसे अनेक साथियों को गांव में या तो गांव के पास ही रोजगार के साधन बनते हैं।

साथियों,

हमारे गांवों को,गांव में रहने वाले गरीबों को,आदिवासियों को जितनी प्राथमिकता हमारी सरकार ने दी,उतनी पहले नहीं दी गई। गरीब से गरीब को एलपीजी गैस सिलेंडर देने की योजना से गांव में,जंगल से सटे क्षेत्रों को दोहरा लाभ हुआ है। एक लाभ तो हमारी बहनों को धुएं से,लकड़ी की तलाश में लगने वाले समय और श्रम से मुक्ति मिली है। यहां इतनी बड़ी मात्रा में जो माताएं-बहनें बैठी हैं, पहले जब हम लकड़ी से चूल्‍हा जलाते थे खाना पकाते थे तो हमारी माताओं-बहनों के शरीर में एक दिन में 400 सिगार जितना धुंआ जाता था। घर में बच्‍चे रोते थे। मां खाना पकाती थी, 400 सिगरेट जितना धुंआ इन माताओं-बहनों के शरीर में जाता था। क्‍या होगा उनके हाल का, उनके शरीर का क्‍या हाल होता होगा। उसको मुक्ति दिलाने का एक बहुत बड़ा अभियान हमने चलाया और घर-घर गैस का चूल्‍हा, गैस का सिलेंडर ताकि मेरी इन माताओं-बहनों को उन 400 सिगरेट जितना धुंआ अपने शरीर में न लेना पड़े, ये काम करने का प्रयास किया गया है। दूसरी तरफ ईंधन के लिए जंगलों के कटान की मजबूरी भी इससे खत्म हुई है।

देश के बाकी गांवों की तरह यहां भी बिजली की बहुत बड़ी समस्या थी। आज ये क्षेत्र सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी बनते जा रहा है, भारत का अहम केंद्र है। मिर्जापुर का सौर ऊर्जा प्लांट यहां विकास का नया अध्याय लिख रहा है। इसी तरह,सिंचाई से जुड़ी सुविधाओं के अभाव में विंध्यांचल जैसे देश के अनेक क्षेत्र विकास की दौड़ में पीछे रह गए। लेकिन इस क्षेत्र में बरसों से लटकी सिंचाई परियोजनाओं को पूरा किया जा रहा है,वहीं दूसरी तरफ बंजर ज़मीन पर किसान सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करके अतिरिक्त कमाई कर सकें,इसके लिए भी मदद की जा रही है। हमारा अन्‍नदाता ऊर्जा दाता बने। वो अन्‍न पैदा करता है,लोगों का पेट भरता है। अब वो अपने ही खेत में उसके साथ-साथ ऊर्जा भी पैदा कर सकता है और लोगों को प्रकाश भी दे सकता है।

हम विंध्य क्षेत्र के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। चाहे वो मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना हो या फिर इस इलाके में सड़कों का निर्माण,सभी पर बहुत तेज गति से काम चल रहा है। बिजली की स्थिति पहले क्या थी और अब कितनी बेहतर है,ये आप भी भली-भांति जानते हैं।

भाइयों और बहनों,

गांव में विश्वास और विकास की कमी में एक और बड़ी समस्या रही है घर और ज़मीन से जुड़े विवाद। इस समस्या को उत्तर प्रदेश के इस हिस्से में रहने वालों से बेहतर भला कौन समझ सकता है। कारण ये है कि पीढ़ी दर पीढ़ी रहने के बाद,उसके बाद भी गांव की ज़मीन के कानूनी कागज़ नहीं थे। अगर उनका घर है तो घर के संबंध में भी कितना ये लंबा है, कितना चौड़ा है, क्‍या उसकी ऊंचाई है, कागज कहां हैं, कुछ नहीं था। दशकों से लोग ऐसे ही जीते रहे, समस्‍या वो झेलते रहे। विवाद बढ़ते गए और कभी-कभी तो मारधाड़ तक हो जाती है, गला काटने तक पहुंच जाता है मामला, भाई-भाई के बीच झगड़ा हो जाता है। एक फुट जमीन के लिए एक पड़ोसी के साथ दूसरे पड़ोस की लड़ाई हो जाती है।

इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए स्वामित्व योजना के तहत यूपी में ड्रोन टेक्नॉलॉजी से घर और ज़मीन के नक्शे बनाए जा रहे हैं। इन नक्शों के आधार पर घर और ज़मीन के कानूनी दस्तावेज़ घर और ज़मीन के मालिक को सौंपे जा रहे हैं। इससे गांव में रहने वाले गरीब, आदिवासी,वंचित साथी भी कब्ज़े की आशंका से निश्चिंत होकर अपना जीवन व्यतीत कर पाएंगे। वरना मुझे तो मालूम है गुजरात में तो आपके क्षेत्र के बहुत लोग काम करते हैं। कभी उनसे मैं बात करता था कि भई क्‍यों चले गए थे? तो कहे नहीं-नई भई, हमारा तो वहां जमीन का झगड़ा हो गया, हमारे घर पर किसी ने कब्‍जा कर लिया। मैं यहां काम करता था, कोई घर में घुस गया। अब ये कागज मिलने के बाद ये सारे संकटों से आप मुक्‍त हो जाएंगे। यही नहीं ज़रूरत पड़ने पर गांव के अपने घर के जो दस्‍तावेज हैं, जो कागज हैं, उससे अगर आपको कर्ज लेनी की जरूरत पड़ी, बैंक से लोन लेने की जरूरत पड़ी तो अब आप उसके हकदार बन जाएंगे। आप जा सकते हैं कागज दिखा करके बैंक से लोन ले सकते हैं।

साथियों,

आज सबका साथ, सबका विकास,सबका विश्वास,ये मंत्र देश के हर हिस्से,हर नागरिक के विश्वास का मंत्र बन चुका है। आज देश के हर जन, हर क्षेत्र को लग रहा है कि उस तक सरकार पहुंच रही है और वो भी देश के विकास में भागीदार है। हमारे जनजातीय क्षेत्रों में भी आज ये आत्मविश्वास में भलीभांति,उसमें एक नई ताकत आई है और मैं इसे देख रहा हूं। आदिवासी अंचलों में मूल सुविधाएं तो आज पहुंच ही रही हैं,बल्कि इन क्षेत्रों के लिए विशेष योजनाओं के तहत भी काम किया जा रहा है। जनजातीय युवाओं की शिक्षा के लिए देश में सैकड़ों नए एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल स्वीकृत किए गए हैं। इसमें हमारे आदिवासी इलाकों के बच्चों को हॉस्टल की सुविधा उपलब्ध होगी। इसमें से अनेक स्कूल यूपी में भी खुल रहे हैं। कोशिश ये है कि हर आदिवासी बाहुल्य ब्लॉक तक इस व्यवस्था को पहुंचाया जाए।

पढ़ाई के साथ-साथ कमाई की संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं। वन-उपजों की ज्‍यादा कीमत आदिवासी साथियों को मिले, इसके लिए साढ़े 1200 वनधन केंद्र पूरे देश में खोले जा चुके हैं। इनके माध्यम से सैकड़ों करोड़ रुपए का कारोबार भी किया गया है।

यही नहीं, अब आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत वनोपज आधारित उद्योग भी आदिवासी क्षेत्रों में लगें, इसके लिए भी ज़रूरी सुविधाएं तैयार की जा रही हैं। आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए पैसे की कमी ना हो, इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड बनाया गया है। सोच ये है कि आदिवासी क्षेत्रों से निकलने वाली संपदा का एक हिस्सा उसी क्षेत्र में लगे। उत्तर प्रदेश में भी इस फंड में अब तक लगभग 800 करोड़ रुपए इकट्ठा किए जा चुके हैं। इसके तहत साढ़े 6 हज़ार से ज्यादा प्रोजेक्ट स्वीकृत भी किए जा चुके हैं और सैकड़ों प्रोजेक्ट पूरे भी हो चुके हैं।

साथियों,

ऐसे ही काम आज भारत के आत्मविश्वास को प्रतिदिन बढ़ा रहे हैं। इसी आत्मविश्वास के दम पर आत्मनिर्भर भारत बनाने में हम सभी जुटे हैं। मुझे विश्वास है कि विंध्य जलापूर्ति योजना से ये आत्मविश्वास और मजबूत होगा।

हां,इस बीच आपको ये भी याद रखना है कि कोरोना संक्रमण का खतरा अभी भी बना हुआ है। दो गज की दूरी, मास्क और साबुन से साफ-सफाई के नियम,किसी भी हालत में भूलने नहीं हैं। ज़रा सी ढिलाई,खुद को,परिवार को,गांव को,संकट में डाल सकती है। दवाई बनाने के लिए हमारे वैज्ञानिक कठिन तप कर रहे हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं,सबसे धनवान देश के लोग भी लगे हैं और गरीब देश के लोग भी लगे हैं। लेकिन जब तक दवाई नहीं,तब तक ढिलाई नहीं।