कविता
कविता
कभी रोने या धोने से दिक्कते कम नही होती
लहू पानी करो आँसू से मिटटी नम नही होती
तपन सूरज में होती है तो तपने लोग लगते हैं
तपी हर चीज तो हर बार तापनी नही होती
लहू पानी करो आँसू से मिटटी नम नही होती
मिलोगे खाक में तो खाक अपने आप को कर दो
हुए जो खाक न उनकी तो निशानी नहीं होती
कभी रोने या धोने से दिक्कते कम नही होती
मिटाओ खुद को तुम इतना न गिरने के लिए रह जाय
क्योंकि हर चीज तो हर बार मिटानी नहीं होती
कभी रोने या धोने से दिक्कते कम नही होती
लहू पानी करो आँसू से मिटटी नम नही होती
कवि दिनेश सोनी