महिला सशक्तिकरण महिलाओं को क्यों नहीं मिल पा रहे उनके अधिकार

II जब नारी में है, शक्ति सारी, तो फिर क्यों कहते हैं, नारी को बिचारी II

साधारण शब्दों में महिला सशक्तिकरण का मतलब है कि महिलाओं को अपनी जिंदगी का स्वयं फैसला करने की स्वतंत्रता देना या उनमे ऐसी छमताएँ पैदा करना ताकि वे समाज में अपना सही स्थान व कीर्तिमान स्थापित कर सकें।

भारत में सिर्फ महिलाओं के सशक्तिकरण की बात कही जाती है परन्तु सच में महिलाओं के साथ घोर अत्याचार अनन्याय हो रहा है। भारतीय समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है। यंहा महिलाओं को हमेशा से दूसरे दर्जे का माना जाता है। परिवार और समाज के लिए ये एक आश्रित से ज्यादा कुछ नहीं समझी जाती हैं। आज भी ऐसा सोंचा जाता है कि महिलाओं को हर कदम पर पुरुष के सहारे की आवश्यकता है।

महिलाओं की सशक्तिकरण की योजना सदियों से चली आ रही है, लेकिन फिर भी महिलाओं को पुरुषो द्वारा शोषण और अत्याचार का सामना करना पड़ता है। उनके साथ भेद भाव किया जाता है, और उनकी आवाज को हर तरीके से दबाया जाता है। सभी धर्म हमें महिलाओं के सम्मान और शिष्टाचार के साथ व्यवहार करने के लिए सिखाते हैं। फिर भी आज के आधुनिक समाज की सोंच इतनी विकसित हो गई है कि महिलाओं के साथ शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की कुरीतियां और प्रथाएं समाज में आदर्श बन गई हैं। जैसे पहले सती प्रथा चली थी तो आज दहेज़ प्रथा है। पर्दा प्रथा, भूर्ण हत्या, पत्नी को जलाना, यौन हिंसा , यौन शोषण, यौन उत्पीड़न जैसे घरेलू हिंसा और अन्य विभिन्न प्रकार के भेदभाव पूर्ण व्यवहार महिलाओं के सशक्तिकरण में शारीरिक और मानसिक कष्ट बनकर सामने आते हैं। समय बदल जाने के बाद भी पहले जैसा ही है। विवाह के बाद उनको लगता है कि आधिकारिक तौर पर उन्हें सबकुछ करने का हक़ मिल गया हैं। बेटी होने पर उनको पढ़ाया नहीं जाता है। यह सोंच कर कि उनको दूसरे के घर जाना है। यह सोंच आज भी लोगों के मनों में पनप रही है। समाज के कुछ अभिभावकों ने जैसे ही अपनी बेटियों को शिक्षा का हक़ दिलाया वैसे ही महिलाओं के अंदर उनकी समझ में वृद्धि हुई। तभी से उनके अंदर खुद को आत्मनिर्भर बनाने की सोंच और इच्छा उत्पन्न हुई। शिक्षा मिलने पर अपने ऊपर विश्वास करना सीखा। घर के बाहर की दुनिया को जीत लेने का सपना बुन लिया और किसी हद तक पूरा भी किया। भारतीय समाज के अन्य लोगों को भी उन अच्छे माता पिता अभिभावकों से सीखना चाहिए जिन्होंने अपने बेटियों को समाज में समानता का अधिकार दिलवाया। आधुनिक भारत में महिलाओं को पुरुषो के सामान अधिकार मिलने चाहिए।

1. महिलाओं को निर्भीकता, बोलने और शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए।

2. महिलाओं को पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए , पुरुषों के बराबर समाज के विकास और उत्थान के लिए।

3. पुरुष और महिलों को सभी क्षेत्रों में एक समान अवसर मिलने चाहिए।

4. अधिकारों तक पहुंच प्राप्त करने के लिए महिलाओं को घर के अंदर और बाहर अपने स्वयं के जीवन को विनिर्मित करने और नियंत्रित करने का सम्पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए। हम खुद को आधुनिक कहने लगे हैं लेकिन सच यह है कि मार्डनाइजेशन सिर्फ हमारे पहनावे में आया है। लेकिन विचारों में हम आज भी पिछड़े हुए है। वैदिक कालीन युग में भारतीय महिलाओं के समान अधिकार हुआ करते थे। उनके साथ किसी प्रकार का कोई भी भेदभाव नहीं होता था।

आज दुर्भाग्य की बात है कि नारी सशक्तिकरण की योजनाएं और बातें केवल शहरों और मंत्रालयों तक ही सिमट के रह गई हैं। एक ओर बड़े शहरों और मैट्रो सिटी में रहने वाली महिलाएं शिक्षित आर्थिक रूप से स्वतंत्र नई सोंच वाली ऊँचे पदों पर काम कर रही हैं। और किसी प्रकार का पुरुषों का अत्याचार सहन नहीं करती हैं। वंही दूसरी तरफ गांव में रहने वाली महिलाएं हैं, जो न तो अधिकारों को जानती हैं और न ही उन्हें अपनाती है। वे अत्याचारों और सामाजिक बंधनों की इतनी आदी हो चुकी हैं कि अब उन्हें वंहा से निकलने में डर लगता है। वे उसी को अपनी नियति समझ कर बैठ गई हैं। अब उन्हें जागरूक होने की आवश्यता है।

संपादन
अंजू मिश्रा (मृग नयनी)
तेलीबाग, लखनऊ

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