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हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करता यह ‘अनजाना जहर’
एक वक्त था जब हमारे पूर्वज जैविक तरीके से खेती कर फसल और सब्जियां उगातें थे। बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किये केवल जैविक खाद के रूप में गोबर का प्रयोग करते थे। जिससे फल,सब्जियां तो शुद्व रहती ही थी साथ ही उनका सेवन करने वाला मनुष्य भी स्वस्थ रहता था और पर्यावरण पर भी इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नही पड़ता था।लेकिन अब हम सभी नियमित रूप से जिन फल,सब्जियां, अनाज आदि का सेवन करतें है उसमे कुछ अंश कीटनाशक दवाइयों का भी घुला मिला होता है।हमारे देश में फसलों को कीटाणुओं से बचाने के लिए अनेक तरह के कीटनाशकों का बहुतायत से प्रचलन हो गया है।ये सभी रासायनिक कीटनाशक एक तरह के हल्के विष होतें है जिनका प्रयोग फसलों पर किया जाता है।आज यह जहर हमारे जीवन मे मुख्यतः दो तरीकों से घुलता जा रहा है। एक तो मक्खी,मच्छर व तिलचट्टे के खिलाफ हम जिन रासायनिक द्रवों का इस्तेमाल करतें है ,उनके माध्यम से,तो दूसरा माध्यम फसलो पर छिड़के जाने वाले कीटनाशक हैं! जिनके अंश अप्रत्यक्ष रूप से भोजन और हवा द्वारा हमारे शरीर मे घुलते जा रहें हैं।
वर्तमान में मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का प्रयोग न के बराबर किया जा रहा है,जबकि मॉस्किटो रेपलेंट्स का प्रयोग सर्वाधिक किया जा रहा है। इनके साइडइफेक्ट भी देखने को मिलतें है पर इनपर ध्यान बहुत कम दिया जाता है।इसके कारण हम रात्रि में आराम से सो तो लेतें है लेकिन धीरे धीरे इनके प्रभाव में आंखों में जलन,फेफड़े कमजोर होना,सुस्ती,चक्कर,सिर दर्द आदि लक्षण नजर आने लगतें हैं।कुछ वर्ष पहले अमेरिका के ड्यूक विश्वविद्यालय के डॉक्टर मु. डोनिया ने मॉस्किटो रेपलेंट्स में प्रयोग किये जाने वाले रसायन ‘डीट’ का प्रयोग चूहों पर किया और पाया कि चूहों की दिमागी कोशिकाएं मरने लगी और उनका व्यवहार भी आक्रामक हो गया।इसका निष्कर्ष यह निकला कि मनुष्य इन कीटनाशकों से दूर रहे तो ही भला है।
इसी तरह फसलों पर प्रयोग किये जाने वाले कीटनाशकों पर भी कुछ वर्ष पहले विभिन्न प्रकार के प्रयोग किये गए। ये प्रयोग चंडीगढ़ के प्रसिद्ध अस्पताल पीजीआईएमआईआर के द्वारा करीब दो वर्षों तक किया गया।इसमे पंजाब के 25 गांवों में किये गए सर्वेक्षण के आधार पर इस नतीजे पर पहुँचा गया कि खेतों में इस्तेमाल किये गए कीटनाशकों और औद्योगिक कचरों ने वहां के लोगो के स्वास्थ्य पर बहुत हानिकारक प्रभाव डाला । इन लोगों के रक्त की जांच करने पर पाया गया कि लगभग 65 प्रतिशत लोगों में जेनेटिक म्यूटेशन की शुरुआत हो चुकी है। यानी इनके जीन में परिवर्तन शुरू हो चुके हैं।इसके साथ ही इन गाँव वालों में में कीटनाशक अवशेषों की भारी मात्रा पाई गई है। जिस तरह से ये मनुष्यों को प्रभावित करतें है उसी तरह का असर जानवरों पर भी होता है।इन कीटनाशकों से भयंकर बीमारियों जैसे कैंसर,मस्तिष्क कोशिकाओं की संख्या में गिरावट,डीएनए की सिंथेसिस प्रक्रिया भी प्रभावित होने लगती है जिसका असर तत्काल तो नही लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में नजर आने लगता है। हालांकि इन कीटनाशकों ने फसलों में आशातीत वृद्धि तो अवश्य कर दी है लेकिन हमारे स्वास्थ्य में भी उसी अनुपात में गिरावट कर दी है।हम इनसे एकदम से अछूते तो नही रह सकतें लेकिन कुछ सुरक्षित उपाय अपनाकर इनसे कुछ हद तक बच जरूर सकतें है।जैसे कोशिश की जाय कि खेती जैविक तरीके से की जाय।मॉस्किटो क्वायल के जगह मच्छरदानी का प्रयोग किया जाय। कीटनाशकों को बच्चों की पहुँच से दूर रखा जाय।अत्यधिक आवश्यकता पड़ने पर ही इनका प्रयोग किया जाय।इन उपायों के अतिरिक्त अपने स्तर पर लोगों को जागरूक किया जाय ताकि हम और हमारी आने वाली पीढ़ी इन अनजाने जहर से बच सके।
- गौरव मौर्या,