रक्षाबंधन संबंधों में मधुरता का पर्व

मानव ने अपने अस्तित्व के साथ अपनी सुरक्षा को सर्वोपरि माना है l सुरक्षा की पृष्ठभूमि पर उसने रिश्तो के उपहार को भी महत्वपूर्ण माना है, जिनके आश्रय में वह आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत करता है l 1 वर्ष में एक बार मनाए जाने वाले पर्व , त्यौहार , उत्सव हमारे मानवीय संबंधों को सुरक्षित करते हैं l रक्षाबंधन संबंधों में मधुरता का पर्व .

प्राचीन मनीषियों ने ऋतुओं के अनुसार मानव की सुरक्षा का आकलन कर परंपरागत रूप में इन त्योहारों की तिथियां पहले से ही सुनिश्चित कर दी थी l प्राचीन काल में रक्षा सूत्रों का एक गहरा संबंध ब्राह्मण या पुरोहितों से भी रहा l ब्राह्मण जो ब्रह्म में रमा हो , ज्ञानवान हो , जो स्वयं सुरक्षित रहे और सुरक्षा का ज्ञान बाटे l ब्राह्मण जाति से नहीं, कर्म से होता है l

उन दिनों पुरोहित सावन माह में हरियाली उगाकर यज्ञ किया करते थे l जौ और गेहूं को मिट्टी के पात्रों में उगाने का विधान था l उसी हरियाली को वे राजाओं को सौभाग्य रूप में दिया करते थे l राजा भी वह सौभाग्य आशीर्वाद रूप में ग्रहण करके पुरोहितों को मुद्रा देकर सम्मान पूर्वक विदा करते थे l

बदलते समय के साथ पुरोहितों ने रक्षासूत्र के साथ यजमानों की मंगलकामना करना प्रारंभ कर दिया l बहनों ने भी अपने सतीत्व की रक्षा हेतु भाइयों की कलाई पर राखी रूपी रक्षा सूत्र बांधना प्रारंभ कर दिया l इस तरह पुरोहितों का उत्सव भारत के प्रत्येक व्यक्ति में लोकप्रिय होता गया l

भारतीय आध्यात्मिक मनोवृति ने प्रकृति से रिश्ता जोड़ा है l रक्षाबंधन का दिव्य संदेश कहीं हमें अपनों के स्नेह से जोड़ता है तो कहीं वह शिक्षा और एवं संस्कृति का ज्ञान भी देता है l रक्षासूत्र का विस्तार हमें यह भी समझाता है कि मानव – का – मानव से आपसी सुरक्षा का महत्वपूर्ण नाता है l उसी विस्तृत भावनारूपी बेल पर मानवता आज भी पुष्पित और पल्लवित हो रही है l आपसी सौहार्द का अटूट संकल्प जहां बहन द्वारा भाई को राखी भेज कर भाईचारे एवं विश्वास को प्रोत्साहित करता है तो वहीं बहनों की सुरक्षा के लिए भाइयों से भी संकल्प निभाने का बोध कराता है l

आपसी विश्वास को पूर्ण करता श्रावणी का उत्सव सावन की हरियाली में बहनों द्वारा भाई को दिए आशीर्वाद का प्रगाढ़ रूप है, जिसमें मंगलकामना के साथ बहन का स्नेह छुपा है – वह भाई जो उसका शुभचिंतक है जिस के समीप वह अपना हृदय खोल सकती है l सावन माह में वह हरे भरे वातावरण में अपने पिता के घर को याद करती है और उन हिंडोलों को अपनी स्मृति में पुनः जीवित करती है, जिन पर उसका बचपन बीता था l उत्साहित मन से अपने भाई से प्रार्थना भी करती है कि इस रक्षाबंधन पर अपनी बहन को पिता के घर बुला लेना l हम सब मिलकर उत्सव मनाएंगे l

संबंधों की मजबूत परंपरा मानवता की संवाहक है, जिसका संदेश हमें पूर्णमासी की मधुर बेला में मनाया जाने वाला उत्सव ज्ञानमय तरीके से समझाता है l श्रावण मास की हरियाली के मनोरम वातावरण में संबंधों की मधुरता घोलने का कार्य उत्सव ही करते हैं l साथ ही इनकी सहजता में छुपा है – आपसी सुरक्षा का वह अनकहा संकल्प, जो उनकी सुरक्षा के दायित्व बोध को जागृत रखता है l

आधुनिक समय में परंपराओं को मनाने के तरीके भले ही पूंजीवादी हो चुके हैं, किंतु उन्हीं की सरलता ने आज सोच की पराकाष्ठा को भी जन्म दे दिया है l नारी प्रकृति का रूप है तो त्योहारों की मूल भावना को जिंदा रखने का भार भी उसी पर है l यह सही है कि आज की नारी सक्षम है , निर्णायक है, किंतु स्नेह करना और रिश्तो को संजोना आज भी नारी की समझदारी पर आश्रित है l वर्तमान में वह अबला नहीं, सबला है, वह आज अपने भाई को भी आश्रय देने में पीछे नहीं है l

रक्षासूत्र हमें यही संदेश देता है कि मंगल के लिए मर्यादाओं का पालन जरूरी है l ब्राह्मणों के द्वारा यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते समय जो मंत्र पढ़ा जाता है, वह भी यही बताता है कि जिससे राजा बलि को बांधा ( मर्यादित और सीमित किया ), उसी सलाह शुभ विचार से मैं तुम्हें भी बांधता हूं – जो तुम्हारी रक्षा करेगा l वैश्वीकरण में आज ज्ञान का भंडार जन जन- तक उपलब्ध करा दिया है l आज ज्ञान का प्रसार सुगम है, किंतु मानवता नित्यप्रति लुप्त होती जा रही है l रिश्ते अस्वस्थ प्रतीत हो रहे हैं l आज के समय के रहन-सहन में प्रायः अपेक्षित परिवर्तन हुए हैं, किंतु आपसी विचारधारा में टकराहट भी बड़ी है l

शहरीकरण एवं जीवनशैली की बदलाव ने रिश्तों को छिन्न-भिन्न किया है, किंतु त्योहारों का मूल संदेश एकता, भाईचारा बढ़ाने का है l आज भी वे सभी वही संदेश देते हैं – जिसका आधार भी वही है कि सभी मिल-जुल कर रहे l मर्यादा वही सिखाती है, जो कभी प्राचीन वैदिक था l कभी परंपरा थी तो कभी विचारणीय था ; क्योंकि मानव का नाता मानवीय था और रहेगा l जीवनदायक तत्वों के साथ त्यौहार , पर्व, उत्सव प्रत्येक को यही ज्ञान बांटते रहेंगे l

रक्षाबंधन संबंधों में मधुरता का पर्व . रक्षाबंधन का पर्व आज भाई-बहन के संबंधों का पर्व बन गया है l भाई-बहन का संबंध पवित्र एवं निस्वार्थ संबंध है l संबंधों की सुरक्षा से बंधा पर्व का यह समीकरण रिश्तो की प्रतिबद्धता को सभी को स्मरण करता रहता है l

संबंधों में संतुलन ,समन्वय , सामंजस्य का उत्सव रक्षाबंधन का पर्व है l बदलते समय के साथ रक्षा सूत्र ने राखी नाम अपनाकर अपने स्वरूप में भी संकुचित मानसिकता अपना ली है l

कभी आपसी रिश्तो में मजबूती धर्म एवं संस्कृति के ज्ञान को बढ़ाने के लिए परंपरा मनाने की स्वस्थ मानसिकता थी तो वहीं आज यह मात्र धागा बांधने की रस्म में बदल चुकी है l

संबंध भी एक हद तक ही स्वस्थ रहता है l अधिकतर का भाव रिश्तो को ढोना ही होता है और दिखावे की रस्म जल्दी ही खत्म भी हो जाती है ; क्योंकि हर संबंध सांस आने-जाने पर भी सुरक्षित रहता है l

यह सही है कि आज मल्टीनेशनल कंपनियां इतना अधिक सुख- सुविधा दे रही है कि उसकी आय से किसी को किसी की रक्षा की जरूरत नहीं है, सभी धन लगाकर अपनी रक्षा मुहैया करा लेते हैं , किंतु परंपरा का स्वस्थ रूप हमेशा से मानवता की रक्षा का सूत्र है; जिसमें बंधे सभी रिश्ते अपनी- अपनी स्वस्थ मानसिकता के साथ फलते – फूलते रहते हैं l

रक्षाबंधन के इन पावन सूत्र सिद्धांतों को अपनाकर इस त्यौहार को फिर जीवंत करना चाहिए l इसी प्रकार हम इस पर्व को सार्थक बना सकते हैं l रक्षाबंधन संबंधों में मधुरता का पर्व .

– अखंड ज्योति / माह अगस्त
पृष्ठ क्रमांक 11 – 12

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