राष्ट्र कुण्डलिनी

सृजन ही प्रकृति की नियति है और नित नया रूप देखना मानव का स्वभाव। समय की गति के साथ हर एक पदार्थ का रूपांतरण होकर नए कलेवर के रूप में बदलता रहता है यदि यंहा पर किसी का अवसान दीखता है तो वह भी नए रूप में प्रस्तुत होने के लिए। भारतीय दर्शन के अनुसार परमात्मा ने सबसे पहले प्राण शक्ति स्वरुप ॐ को प्रकट किया। उससे प्रकाश-ज्ञान का सृजन हुआ। उसी से सृष्टि में प्रकृतिक पदार्थों की उत्पत्ति हुई। समस्त जीव जंतुओं का सृजन भी उसी से हुआ।

मानव ने जन्म लेते ही अपने कदम विकास की ओर बढ़ाये और धरती पर उपलब्ध समस्त पदार्थों का रूपांतरण शुरू किया। यंहा तक की अपना शरीर मन एवं विचार भी बदले। आज हम जिस विकास की दौड़ में खड़े हैं वंहा सबकुछ बदला बदला नजर आ रहा है। और यदि यही क्रम चलता रहा तो सुख सुविधाओं को बटोरने की दौड़ में हम सब कुछ गवां देंगे जो हमें प्रकृति की ओर से निःशुल्क में मिला है। वायु, जल. प्रकृति सम्पदा, मानव शरीर, विचार संस्कार आदि।

आज इंसान को सृजन के लिए किये गए विकास के द्वारा हुई विनाश लीलाओं से सबक लेना चाहिए और वास्तविक सृजन के लिए अग्रसर होना चाहिए। चूंकि आज के समय के लिए इंसान के विकृति विचार ही जिम्मेदार हैं। इसलिए आज के सृजन कर्ताओं की जिम्मेदारी है कि सबसे पहले मनुष्य को रचनात्मक विचार दिए जाएँ, मन मस्तिष्क में बोये जायं जिससे उसे यह बोध हो सके कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।

इस सृजन के लिए जिम्मेदार इस समय की विशिष्ट प्रतिभाओं को अपने बारे में एटीएम चिंतन करना होगा तथा अपनी दिशा धारा मोड़ना होगा। आज जिन विशिष्ट लोंगो के हाथ में राष्ट्र को विशिष्ट गौरव दिलाने की विशिष्ट प्रतिभाएं हैं। उनमें से 1. वैज्ञानिक 2. राजनेता 3. पूंजीपति 4. साहित्यकार 5. कलाकार 6. युवा वर्ग 7. नारी वर्ग विशेष है। इन्हे राष्ट्र की विशेष विभूति कहा जा सकता है। जिस प्रकार शरीर की विशिष्ट आध्यात्मिक ऊर्जा को कुण्डलिनी कहा जा सकता है। जैसे कुण्डलिनी की विशिष्ट ऊर्जा के जगते मनुष्य अलौकिक कार्य संपन्न करने लगता है। ठीक उसी प्रकार इन विशिष्ट विभूतियों के जागते ही राष्ट्र आशातीत सफलताएं प्राप्त करने लगता है। जो संसार के लिए अलौकिक दिखाई पड़ती हैं। लोग यह कहने लगते हैं कि यह कार्य करने वाले लोग इस लोक के नहीं किसी दूसरे लोक के निवासी थे।

इतिहास अपने आप को दुहराता है। प्राचीन की ओर घूमते हैं तो ऐसा बहुत बार देखने को मिलता है। जब इन विशिष्ट प्रतिभाओं ने समय को पलटा है। आजके दिनों पहले जब देश की आजादी की जंग चल रही थी उस समय इनमे से कौन सी ऐसी प्रतिभा नहीं थी कि जिसने अपने आप की आजादी के आंदोलन में न लगे हो।

जिनके हाथ में विशिष्ट प्रतिभा है यदि वे व्यामोह को छोड़कर अपनी शक्ति का समग्र मूल्यांकन करें तो यह पाएंगे की इनमे से यदि कुछ लोगों को ही यह आत्मानुभूति हो जाये तो परिश्थितियां बदलने में देर नहीं लगेगी। यह जो स्वार्थवाद का युग है ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है। वैज्ञानिकों को सृजन के सरंजाम जुटाने पड़ेंगे। राजनेताओं को व्यवस्था व्यस्थित तरीके से बनाना ही पड़ेगा। जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा, प्रान्त आदि के नाम पर गुमराह करना छोड़ना पड़ेगा। पूंजीपतियों को पूंजी के विकेन्द्रीकरण की बात सोंचनी पड़ेगी। जिससे हर व्यक्ति के लिए जीने के साधन जुटाए जा सके। साहित्यकारों को समाज में सकारात्मक विचार देने होंगे। लोंगो की बुराइयों को उजागर करते करते हमारी निगाह बुरी हो गई है। लोगों की अच्छाइयों को बतलाकर उभार कर लोगों में आत्म विश्वास के साथ सृजनात्मक विचार देने होंगे। कलाकारों के द्वारा दुर्भावनाओं को भड़काने की जगह सद्भावना को विकसित करने वाले कार्यक्रम बनाने होंगे। युवावर्ग को गति के साथ दिशा भी जोड़नी होंगी। दिशा के अभाव में आज इस विशिष्ट ऊर्जा का अधः पतन हो रहा है। नारियों को आत्म विश्वासी बनना होगा। नारी जागरण हो रहा है नारियां पुरुष बनने की होड़ में लगी हैं। यह नारियों के लिए दुर्भाग्य होगा। उसे अपनी गौरव गरिमा का बोध करना होगा।

राष्ट्र कुण्डलिनी समाचार इन सबके लिए सृजन सन्देश लेकर आया है। समय को समझें श्रेय के भागीदार बनें। पुराने समय के परिवर्तन अवतारों द्वारा सपन्न होते रहे हैं। उनके अलौकिक कार्यों को देखकर लोग यह कहने लगे थे कि समस्त राजतंत्र को नई दिशा दे देने वाला भगवान ही हो सकता है। भगवान परशुराम इसके उदहारण हैं। समुद्र में पुल जिन इंजीनियरों ने बनाया था वे देवलोक से आये लोग थे। ठीक इसी प्रकार के अलौकिक कार्य इन्ही दिनों संपन्न होने जा रहे हैं. यह भविष्वाणी नहीं यथार्थ वर्णन है। जिसे हम शुतुरमुर्गी निगाहों के कारण नहीं देख पा रहे हैं। प्राचीन काल के वैज्ञानिक मानव क्लोनिंग करके यदि रक्त बीज और महिषासुर का निर्माण कर लेते थे। तो सृजन द्रष्टा आध्यात्मिक प्रयोगों द्वारा राम लक्ष्मण भारत शत्रुघ्न का निर्माण भी कर लेते थे। आज वही आध्यात्मिक वैज्ञानिक प्रक्रिया दोहराई जा रही है। प्रज्ञावतार के द्वारा वैज्ञानिक आध्यमिकवाद का विकास मानव में देवत्व जगाकर रहेगा तथा इसी भूमि पर ‘स्वर्गादिप गरीयसी ‘ परिस्थितियां बनकर रहेंगी। राष्ट्र कुण्डलिनी समाचार इस दिशा में मील का एक पत्थर होगा। सृजन में लगे समस्त सृजन शिल्पियों से इसके विस्तार में सहयोग देने की अपेक्षा है।