मनुष्य जीवन में भाग्य की भूमिका एवं महत्व पर विशेष

इस धराधाम पर आने वाले प्रत्येक मनुष्य की भाग्य एक जैसी नहीं होती है बल्कि हर एक मनुष्य की भाग्य अलग- अलग होती है। मनुष्य को अपनी भाग्य के अनुरूप फल मिलता है।भाग्य अनुसार कोई राजसी जीवन तो कोई भीखमंगा जीवन व्यतीत करता है।वैसे तो पत्थर जड़ होता है और इधर उधर पड़ा रहता है।लेकिन वहीं पत्थर जब भाग्य से किसी मंदिर में मूर्ति बनकर पहुँच जाता है तो वह भगवान बन जाता है और लोग उसे भगवान समझकर उसकी पूजा अर्चना उपासना करके उसका भोग लगाना शुरू कर देते हैं ।

पत्थर तो मंदिर पहुँच कर भगवान बन जाता है किन्तु मनुष्य रोजाना मंदिर जाकर पूजा अर्चना करता है लेकिन वह भगवान क्या इंसान भी नहीं बन पाता है।भाग्य के खेल निराले होते हैं और भाग्य मनुष्य के कर्मों से बनती बिगड़ती है।एक नारी एक संतान के लिए अपनी बहुमूल्य खूबसूरती को त्याग देती है किन्तु वहीं संतान अपनी सुन्दर पत्नी के लिये जब अपनी माँ को त्याग देता है तो उस मां का कलेजा फट जाता है और अपनी भाग्य को कोसने लगती है।

जीवन में मनुष्य नाम , पहनावा और मकान के लिये परेशान रहता है तथा इन्हीं तीनों की पूर्ति करने मे सारा जीवन व्यतीत कर देता है लेकिन मरते ही तोनो के संबोधन बदलकर “नाम” की जगह “स्वर्गीय” और पहनावे का नाम बदलकर “कफन” और मकान “शमसान” बन जाता है। इंसान द्वारा किये गये कर्म ही मनुष्य के नाम के रूप में रह जाता है। बड़ी भाग्य से मनुष्य जीवन मिलता है और जब उससे भी बड़ी भाग्य होती है तो मनुष्य जीवन सफल होकर ईश्वरमय हो पाता है।

कुछ लोगों के न रहने पर लोग कहते कि- “एरिया पाख हो गई” तो कुछ के न रहने पर लोग रोते हैं और कहते हैं कि “एरिया राड़ हो गई” है। अगर इन्सान हो तो इन्सानियत की राह पर चलना भी सीखो ताकि लोग आपको अपना आदर्श मानकर आपका अनुसरण करें। धन्यवाद।।भूल चूक गलती माफ।। 

भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार / समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी ।

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