कलयुग का कल्पवृक्ष श्री हनुमान चालीसा

कलयुग का कल्पवृक्ष श्री हनुमान चालीसा

कहा जाता है कि देवराज इंद्र के यंहा कोई वृक्ष है जिसके नीचे बैठकर जो भी कल्पनाएं करते हैं वे उन लोगों को तुरंत उपलब्ध हो जाती हैं। कल्पवृक्ष यह नहीं देखता कि यह कल्पना करने वाला छोटा, बड़ा, अमीर, गरीब, पवित्र, अपवित्र कैसा है। कल्पना करते ही वह साकार होने लगती है। ठीक इसी प्रकार श्री हनुमान चालीसा के पाठ की साधना करने वाला जिस किसी कामना को लेकर चालीसा का पाठ करने लगता…

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श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा

॥ श्री हनुमान चालीसा ॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥ राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा…

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हनुमान चालीसा घोर तांत्रिक

हनुमान चालीसा घोर तांत्रिक

हनुमान चालीसा घोर तांत्रिक किन्तु तंत्र के प्रतिबंधों से मुक्त है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री हनुमान चालीसा की रचना उस समय की जिस समय वे अकबर के कारगर में बंद थे। उस समय पूजा करना या कोई उपचार संभव नहीं था। कोई बड़ी रचना भी नही लिखी जा सकती थी। जो भी उपचार करें उसका ही अनुशरण करके आगे सभी लोग लाभान्वित हों इसके लिए कम साधन समय में कोई उपचार हो ऐसा उपाय…

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हनुमान चालीसा में संकट मिटने का मूल सिद्धांत

हनुमान चालीसा में संकट मिटने का मूल सिद्धांत

हनुमान चालीसा में संकट मिटने का मूल सिद्धांत है . मनुष्य के ऊपर संकट आने का मूल कारण उसके द्वारा किये गए पूर्व जन्म अथवा इस जन्म के पाप हैं। उनका समन या तो संकट भोगकर अथवा उसके अनुरूप तप करके ही मिटाया जा सकता है। श्री हनुमान जी भी संकट से उसे ही मुक्त करते हैं जो उस सिद्धांत का पालन करता है। “संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै”…

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सदबुद्धि की कथा है हनुमान चालीसा

सदबुद्धि की कथा है हनुमान चालीसा

कारगार में पड़े पड़े तुलसीदास जी सोचने लगे कि संकट में मनुष्य का साथी कौन होता है। तब हनुमान जी ने उन्हें सुझाया कि संकट में मनुष्य की सदबुद्धि ही मनुष्य की साथी होती है। क्योंकि यदि सदबुद्धि नहीं होगी तो मनुष्य में दुर्बुद्धि होगी और “जंहा कुमति तंहा विपत्ति निधाना” . कुमति आने से भगवान का भजन छूट जाता है। भगवान का चिंतन भजन छूटना बड़ी विपत्ति को आमंत्रित करता है। “कह हनुमंत विपत्ति…

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श्री हनुमान चालीसा का अनुष्ठान श्री हनुमत साधना का सबसे चमत्कारी तांत्रिक प्रयोग

श्री हनुमान चालीसा का अनुष्ठान श्री हनुमत साधना का सबसे चमत्कारी तांत्रिक प्रयोग

श्री हनुमान चालीसा का अनुष्ठान श्री हनुमत साधना का सबसे चमत्कारी तांत्रिक प्रयोग है। श्री रामचरित मानस की रचना अकबर के समय में हुई। इस महाग्रंथ की प्रसंशा जब सम्राट अकबर ने सुनी तो उसने गोस्वामी तुलसीदास जी को बुलवाया। गोस्वामी जी से कहा कि आप इसी प्रकार का ग्रन्थ मेरे बारे में लिखें। इस पर वे सहमत नहीं हुए। बहुत कहने पर भी नहीं माने तो उसने उन्हें कैद कर लिया। अब वे सोचने…

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कार्य की समृद्ध फसल (कर्म)

कार्य की समृद्ध फसल (कर्म)

मानव जीवन एक ऐसा क्षेत्र है, जहां कर्म बोए जाते हैं और उनके अच्छे या बुरे फल काटे जाते हैं। जो अच्छे कर्म करता है, उसे अच्छा फल मिलता है। बुरे कर्म करने वाले को बुरे फल मिलते हैं। यह कहा जाता है। “जो आम बोएगा, वह आम खाएगा, जो बबूल बोएगा, उसे काँटे मिलेंगे।” जिस प्रकार बबूल की बुवाई से आम प्राप्त करना प्रकृति में संभव नहीं है, उसी प्रकार बुराइयों के बीज बोने…

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आज है सावन शिवरात्री मुख्यमंत्री योगी और सतीश शर्मा ने दी बधाई

आज है सावन शिवरात्री मुख्यमंत्री योगी और सतीश शर्मा ने दी बधाई

आज के दिन सावन माह की शिवरात्रि पूरे देश में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। हिन्दू धर्म के विद्वानों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन शिव जी का प्राकट्य हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस दिन शिव जी देवी पार्वती के साथ विवाह के बंधन में बंधे थे। वैसे तो हर माह मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन सावन की शिवरात्रि का विशेष महत्व। है क्योंकि सावन और शिवरात्रि…

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उत्तम कर्म करने से मन दुःखी नहीं होता

उत्तम कर्म करने से मन दुःखी नहीं होता

मनुष्य जब तक जीवित रहता है, सर्वदा कार्य में संलग्न रहता है, चाहे कार्य शुभ हो या अशुभ। वह कुछ न कुछ कार्य करता ही रहता है और अपने कर्मों के फलस्वरूप दुःख सुख पाता रहता है। बुरे कर्मों से दुःख एवं शुभ कर्मों से सुख।जब हम ईश्वर की आज्ञानुसार कर्म करते हैं, तो हमें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है, क्योंकि वे कार्य शुभ होते हैं, परन्तु जब हम उनकी आज्ञा के विरुद्ध…

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मन को सदा सद्विचारों में संलग्न रखें

मन को सदा सद्विचारों में संलग्न रखें

मनुष्य जब तक जीवित रहता है सर्वदा कार्य में संलग्न रहता है, चाहे कार्य शुभ हो या अशुभ।* कुछ न कुछ कार्य करता ही रहता है और अपने कर्मों के फलस्वरूप दुःख सुख पाता रहता है, *बुरे कर्मों से दुःख एवं शुभ कर्मों से सुख। जब हम ईश्वर की आज्ञानुसार कर्म करते हैं तो हमें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता है क्योंकि वे कार्य शुभ होते हैं परन्तु जब हम उनकी आज्ञा के विरुद्ध…

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